Wednesday, November 5, 2014

द्वारका कथा यात्रा 2014

भगवान कृष्ण की पवित्र नगरी द्वारका में श्री मदभागवत कथा ज्ञान यज्ञ का आयोजन 23 दिसंबर से 29 दिसंबर 2014 तक है। 21 दिसंबर को सायंकाल जयपुर से रवाना होकर 22 दिसंबर सायंकाल पहुंचेगे। 29 दिसंबर सायंकाल वापसी है जिससे 30 दिसंबर सायंकाल जयपुर पहुंचेगे। 

श्री विजयशंकर मेहता प्रतिदिन प्रातः 10 बजे से अपराह्न 1 बजे तक सुधी श्रोतागणों को कथामृत का पान कराएँगे।  300 से अधिक परिवार जन एवं मित्र सम्मिलित होंगे। 

सभी का स्वागत है।

निवेदक

भिवाल परिवार
लालसोट-जयपुर


        





                            

            Pt. Vijayshankar Mehta



Monday, November 3, 2014

शरण

तुम क्यों चाहते हो दुःख से मुक्ति ?
क्या तुम्हे पता है सुख भी समाप्त हो जायेगा 
दुःख के साथ ही। 
कहते हैं कि एक अलौकिक आनंद मिलेगा उसके बाद,
जिसका शब्दों में वर्णन संभव नहीं। 

क्या तुम्हे विश्वास नहीं है अपने सद्गुरु पर,
जो चिता करते हो सुख और दुःख की ?
क्या करना है इस लोक के दुःख और सुख का,
जब गुरुदेव कर सकते है बेडा पार इस लोक से ही। 

इस छलांग के लिए मन तैयार क्यों नहीं है ?
क्योंकि उसे पता है कि यह मात्र छलांग नही ,
वरन मन की मौत है। 
मन  तो अनुभव कर सकता है मात्र दुःख या सुख,
आनंद का अनुभव तो आत्मा का विषय है। 
मन भला इसको कैसे स्वीकार करे ?

मन के बिना कोई अभिव्यक्ति भी नहीं,
संकल्प और विकल्प भी नहीं,
विचार और उनका ठहराव भी नहीं,
है बस एक अनिवर्चनीय शांति,
जिसका प्रमाण है मात्र सद्गुरु,
उनके सिवा जानने का कोई और ढंग भी नहीं। 

ऐसे में क्या करें,
मन तो अपने दुःख से मुक्ति चाहे,
और सुख की निरंतर चाह करे। 
बुद्धि तो मन की चेरी है,
नित्य मन की ही परवाह करे। 
आश्रय है मात्र विवेक
जिसे जगाते है सद्गुरु,
जो है परमात्मा के आलोक की किरण,
विवेक के द्वारा ही संभव है यात्रा। 

सद्गुरु निरंतर करते है मार्गदर्शन,
अपनी उपस्थिति और अनुपस्थिति दोनों में,
जगाते रहते है दृष्टा भाव,
हर अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थिति में,
कृतज्ञता का भाव इसे गति देता है,
भाव से साधक को लाभ अधिक मिलता है। 

साधक तो वही है, जो अटका हुआ है अभी राग द्वेष में,
लेकिन उसे विश्वास हो गया है अपने गुरु पर,
तैयार है अज्ञात में छलांग लगाने को,
जहाँ संसार छूट जायेगा और आनंद मिल जायेगा। 

परमात्मा को चाहे माने या न माने ,
प्रकृति की शक्ति को सभी स्वीकार करते है,
शक्ति की कल्पना बिना शक्तिमान के,
मूढ़ वैज्ञानिक और अहंकारी ही करते है। 
शक्ति के पीछे है सार्वभोम चेतना,
जो सुन सकती है और स्वीकार कर सकती है प्रार्थना,
इतना सा मान लेना ही तो है परमात्मा की स्वीकृति। 

और जो यह मान लो कि यह शक्ति असीम है,
अकल्पनीय है, कर सकती है मानव शरीर धारण,
देने को शिक्षा मानव जगत को,
करने को संसार का कल्याण ,
हो जायेगा अवतार की अवधारणा का समाधान। 

सगुण साकार को मानते ही तो भाव उमड़ पड़ते है,
क्या परम दयालु परमात्मा हमारे लिए इतना कष्ट करते है,
मानव शरीर में आकर लीला प्रकट करते है,
भव तारण हेतु गीता ज्ञान प्रकट करते है। 

ऐसे परम कृपालु पुनः पुनः अवतरित होते है,
सद्गुरु की देह में स्वयं को प्रकट करते है,
मानव पर कृपा का अंत नहीं,
उनकी दया का अंत नहीं,
हमारा कोई पुण्य नहीं,
और कोई पुरुषार्थ नहीं,
नहीं जानते रहस्य इस अनन्त कृपा का,
मात्र कर सकते है प्रार्थना हम,
दे दो शरण,
नहीं कर पाते हैं अपना कर्त्तव्य भी,
बस एक ही आस है हमारे पास,
आपकी शरण की।