Friday, April 8, 2022

राम को प्रणाम

रामनवमी उत्सव मना रहे हैं, राम के आविर्भाव का,
स्वप्न साकार हुआ है अब, मंदिर के निर्माण का। 
मन में राम, तन में राम, साँसों में बसते हैं राम,
धर्म का है, मर्म यही , जड़ चेतन में केवल  राम। 
राम ने हमारे लिए , जिया आदर्श जीवन,
मनुज लीला करते रहे, भटके जंगल वन। 

राम-लक्ष्मण, भरत शत्रुघ्न, जन्मे भाई साथ,
साथ खेले, बड़े हुए, विवाह भी हुआ साथ। 
राज्याभिषेक की तैयारी हुई, राम को कुछ करना होगा ,
आए थे राक्षस वध हेतु, अब अवध छोड़ना होगा। 

कौन दे बलिदान अब, दाँव पर सर्वस्व है,
पति, प्रिय पुत्र राम, और लोक यश है। 
राज काज में थी निपुण, युद्ध में भी साथ निभाती थी,
नाम कैकयी, भरत की माता, राम को अधिक चाहती थी। 

मानवता है त्रस्त यहाँ, ऋषि पाते हैं कष्ट,
राक्षस फैले हैं चारों ओर, तंत्र हो रहा भ्रष्ट।  
खर दूषन की छावनी, बना हुआ दंडकारण्य,
रावण लंका से करता राज, सुरक्षित नहीं अरण्य। 
क्या करोगे राजा बनकर, महलों में रहकर के राम,
प्रजा को सुखी करे, यही राजा का असली काम। 
मैं सह लूँगी अपयश सारा, दशरथ के तुम प्राण हो,
जीवन मृत्यु विधि के हाथ, तुम मानवता के त्राण हो।  
ऐसा अद्भुत निर्णय किया, सदियों का अपयश लिया,
पति को खोया, सम्मान खोया, राम को वन भेज दिया। 

त्याग सहज हैं सुविधाओं का, इस पृथ्वी के राज्य का,
कठिन भले ही, दधीचि ने, दिया आदर्श प्राण त्याग का,
लेकिन कलंक को धारण करना, अपने जीवन यश का त्याग,
कोई उदाहरण नहीं है कहीं भी, कैकेयी का है अनुपम त्याग। 

कैकयी के प्रेम से भरा हुआ, था राम का बचपन,
जानकी को मुँह दिखाई में, दिया था निज भवन !
भरत कभी नहीं समझ पाए, अपनी माता को,
राम ने दिया सम्मान, जननी सम विमाता को। 
राम का प्रेम भी कैकयी का, अपयश नहीं मिटा  सका,
लेकिन इसी त्याग के कारण, रावण वध सम्भव हो सका। 

ध्यान से पढ़ना, राम कथा, रामायण,
खलनायक भी लीला हेतु, पहने हैं आवरण। 

महापंडित रावण ने, रामेश्वरम की करवाई थी स्थापना,
और राम के साथ पूजा हेतु, सीता को लाया था वहाँ। 
लेकिन राक्षस संस्कृति में थी, केवल भौतिक सम्पन्नता,
लूटते थे देव और मानव को, थी सोने की लंका। 
आर्य संस्कृति के अनुरूप,नारी का सम्मान नहीं भाता था। 
देवों की तरह नारी को, भोग की वस्तु ही जाना था। 

त्रिदेवों में ब्रह्मा ने दिया, रावण को वरदान,
वध मात्र मानव द्वारा, उसी  रूप में आए राम। 
रावण ने शिव को भी, तप से प्रसन्न किया था,
कुबेर की सम्पदा ली. देवों का दलन किया था। 
लेकिन किया सीता हरण , पाप का घड़ा भर गया,
अपने पापों से मुक्ति का, यही मार्ग समझ आ गया। 
अति पराक्रमी रावण की, हो गयी युद्ध में पराजय,
भाई लक्ष्मण का साथ मिला, राम की हुई जय। 
ज्ञानी और अहंकारी  रावण ने, अंत समय जब आया था,
लक्ष्मण के अनुरोध पर, राजनीति का पाठ पढ़ाया था। 

त्याग और बलिदान, जीवन भर परोपकार,
राम मर्यादा पुरुषोत्तम, हरते धरती का भार। 
राम है औदार्य, क्षमा का मूर्तिमान स्वरूप,
भक्तों के लिए है, दया और प्रेम का रूप।