Wednesday, June 8, 2022

राम को प्रणाम

अनेक बार यह विचार  आता है, जब आगे बढ़ता हू,
क्या कुछ पीछे छूट जाता है, और क्या मिल जाता है?

चला विश्वामित्र के संग, माता-पिता व अयोध्या छोड़ कर,
मिल गयी जीवन संगिनी सीता, शिव धनुष पिनाक तोड़ कर। 
चला वनवास के लिए, पीछे अवध का राज-पाट  छोड़ कर,
संग सीता लक्ष्मण आये,निषादराज व केवट से प्रेम जोड़ कर। 

चला  भरत अयोध्या से, मिला हुआ राज्य छोड़ कर,
ली चरण पादुका, अमित प्रेम का बंधन जोड़ कर। 
चला जंगल में आगे चित्रकूट को छोड़ कर,
ले गया रावण, सीता को, मर्यादा तोड़ कर। 

आगे बढ़ा, शबरी का प्रेम मिला, हनुमान सा सेवक मिला,
लक्ष्मण की जीवन रक्षा का, भविष्य का सरंजाम मिला। 
फेंके दूर हिमालय में, शबरी के जूठे बेर, जो लक्ष्मण ने,
संजीवनी बूटी बन गए, जब हनुमान गए औषधि लेने। 

आगे बढ़ा किष्किंधा की ओर, शबरी को मुक्त कर,
मिला सुग्रीव संग अंगद से, बाली का वध कर। , 
चला किष्किंधा से लंका के लिए, वानर सेना जोड़ कर,
आ गया विभीषण लंका से, रावण का साथ छोड़ कर,
मिलते गए नए साथी, लीला के हर मोड़ पर,
मनुज लीला में आदर्श दिखाया, मोह बंधन तोड़ कर।

रावण को मार दिया, लंका का अभेध दुर्ग तोड़ कर,
अग्नि से प्रकट सीता को, स्वीकारा, सबने कर जोड़ कर। 
जननी और जन्मभूमि के लिए, चला स्वर्ण लंका छोड़ कर,
अपूर्व स्वागत अयोध्या में, दिए जला व पटाखे फोड़ कर। 

फिर से राज्य अयोध्या में, अपने परिवार, प्रजाजनों का साथ,
वही का वही, क्या छोड़ा, क्या पाया, सब कुछ है मेरे पास।
यदि जो राज्य किया होता, वन में न भेजा गया होता,
अन्य रघुकुल राजा की तरह, भुला दिया गया होता। 
मेरा जीवन भी है ऐसा ही, खोने और पाने का खेल,
राज्य, धन, साथी छोड़ने और और प्रेम का मेल।  

मैं सब में समाया, जीव या संसार, सब मेरी माया,
जिसने निरंतर ढूँढा, अपने दिल में राम को पाया।
तो यह पाने और खोने का, छोड़ने और जोड़ने का,
खेल है शाश्वत, सम्बन्ध राम से केवल प्रेम का। 
जब करते हैं संत, लीला हेतु मुझे प्रणाम,
लिख देते हैं साथ में, राम से बड़ा राम का नाम।