Monday, August 8, 2022

राम को प्रणाम

जननायक राम ने किया अनुपम प्रेम अपने भाई से,
त्यागी भरत, सेवक लक्ष्मण एवं वीर शत्रुघ्न से।
खलनायक रावण ने भी प्रेम किया अपने भाई से,
वीर कुम्भकर्ण से, लेकिन चिढ़ता था विभीषण से।

दुष्ट व्यक्ति को, राम नाम नहीं सुहाता है,अपने अहंकार के आगे, कुछ नज़र नहीं आता है।विभीषण का नीति उपदेश नहीं भाया रावण को,देश निकाला दिया लंका के आगामी शासक को।
हनुमान जब लंका गए थे, सीता का पता लगाने को,राम नाम अंकित घर देख, मिले थे विभीषण को।विभीषण उसी दिन घर का भेदी बन गया था,अशोक वाटिका में सीता का पता बताया था।रावण जैसा शक्तिशाली और अहंकारी राक्षस,क्यों नहीं मारा विभीषण को, क्यों रहा विवश ?क्या भाई का प्रेम, या अपनी प्रजा की रक्षा का दायित्व,अथवा विरोधी विचार को भी संरक्षण का औदार्य ?
सोने की लंका में प्रजा, भौतिक उन्नति से आनंदित थी,धर्म का विचार छोड़, सांसारिक भोग में लिप्त थी।ऐसे में कोई एकाध ही अति विकसित मेधावी होता है,जो धर्म का विचार करता है, प्रभु का स्मरण करता है।जब जीवन में सुख की बाढ़ आयी हुई हो,बहुमत अधर्म के साथ, प्रजा सोई हुई हो,नीति व धर्म का चुनाव विभीषण ही कर पाता है,अनीति के विपरीत परिणाम को सोच पाता है।अधर्मी और अन्यायी राजा, प्रजा का द्रोही होता है,अपने अहंकार के कारण, राज्य को नष्ट करता है।
विभीषण का द्रोह अपने भाई या मातृभूमि से नहीं है,लंका के सिंहासन का लालच भी कारण नहीं है।बाली को मार कर, लंका पार आ चुके हैं राम,सीता को लौटा दो, वरना लंका का अब होगा नाश।रावण को विभीषण की धर्म युक्त सलाह नहीं भायी,उसने तो भरी सभा में विभीषण को लात लगायी।जब भी अहंकार में अपने का, करता कोई अपमान,परिणाम में सदैव दुःख, विधि का यह नियम जान।
असमंजस है विभीषण को, किसकी चिंता करूँ?भाई और राजा की सुनूँ या मातृभूमि की रक्षा करूँ।राम के समक्ष रावण की होगी निश्चित हार,राम से मिलकर होगा, लंका की प्रजा का उद्धार।राम ने विभीषण को, लंका का राजा बना दिया,धर्म और मर्यादा हेतु, रावण को युद्ध में मार दिया।
ईश्वर की भक्ति जीवन का अंतिम ध्येय है।भौतिकता है प्रेय, आध्यात्मिक उन्नति श्रेय है।विभीषण को सप्त चिरंजीवी में मिला है स्थान,राम की भक्ति महान, हम करें राम को प्रणाम।