Sunday, May 8, 2022

राम को प्रणाम

राम है हमारे, अब हम भी हो जायें राम के,
शरण हो जायें राम की, गुण गायें हम राम के। 
राम का जीवन सिखाता है हर पल हमें,
वीरता और नम्रता, जीवन में चाहिए हमें। 

राम की प्रतीक्षा, कर रहे थे दुखी अनेक,
जड़ बनी हुई शिला सम, अहिल्या थी एक। 
गौतम पत्नी से हुआ, अनजाने में एक अपराध,
इंद्र ने मर्यादा भंग की, ऋषि ने दिया उन्हें शाप। 

राम जा रहे थे संग विश्वामित्र, देखने स्वयंवर,
राह में आ गया था, गौतम ऋषि का आश्रम !
देखो राम! यह परित्यक्त, ऋषि पत्नी है यहाँ,
शील भंग किया पापी इंद्र ने, मिली इसे सजा,
ऋषि ने इसे आश्रम में, जड़ बनाकर छोड़ दिया,
समाज-बहिष्कार से, शिला-सम जीवन हुआ। 

तुम राम हो, धर्म के, पालक और संस्थापक हो,
धर्म पर आधारित सृष्टि, तुम नियामक हो। 
यदि सामाजिक कुरीति, हो धर्म के नाम पर,
करो सृजन नव रीति का, कुरीति पर वार कर। 
विश्वामित्र आगे बोले, इंद्र ने जो छल किया,
गौतम ऋषि ने अनजाने ही, अनुचित दंड दिया। 
तुम अपना लो समाज में फिर से,
इसे इसका उपयुक्त स्थान दो,
तुम राजपूत्र हो, मर्यादा पुरुषोत्तम,
पीड़ित मानवता के त्राण हो। 

आज्ञापालक राम ने, जाकर उन्हें प्रणाम किया,
उनके अनुपम तेज से, आश्रम आलोकित हुआ। 
अहिल्या जैसे जड़ हुई, सहमी सिकुड़ी बैठी थी,
जो सदियों से ना हिली, दुःख की वो गठरी थी। 
सहसा किसी मानव को देख, एक हरकत हुई,
समाज पुनः अपना लेगा, ऐसी हसरत जगी। 

दृष्टि उठी, देखा समक्ष, ऋषि विश्वामित्र को, 
भाई लक्ष्मण संग खड़े हुए, तेजोमय राम को। 
स्वतः दण्डवत प्रणाम किया, चरण रज का स्पर्श किया,
राम ने माता कहकर, अति आदर से सम्बोधित किया। 
अतीव आश्चर्य, वनवासी जन को होने लगा,
स्वतः समाचार, ऋषि आश्रमों में पहुँच गया। 
आए सब और हुए नतमस्तक, शिरोधार्य किया राम का निर्णय,
देवी अहिल्या को मिला सम्मान, हुई सुरक्षित और निर्भय। 

राम ने मर्यादा का पालन किया, मर्यादा को पुनर्स्थापित किया, 
जहाँ भी जो अनुचित हुआ,  उसका उचित पुनर्निर्धारण किया। 
परब्रह्म ने अवतार ले, किए थे आदर्श काम,
इसीलिए हम करते सदा, राम को प्रणाम।