Tuesday, March 8, 2022

राम को प्रणाम

राम ने दिखाया हमें, प्रेम का उत्कृष्ट आदर्श,
वनवास या रावण वध, किया सीता से विमर्श। 

जब मन हुआ था आकर्षित पुष्प वाटिका में,
कह दिया था लक्ष्मण को, पराई नारी नहीं ये,
मेरा मन रघुवंशी नहीं डोलता स्वप्न में भी,
हो रहा  है स्वयंवर, उपयुक्त वर है राम ही। 
सीता ने भी माँग लिया था गौरी से वरदान,
मिले मुझे मन अनुरूप वर, धनुष यज्ञ में आज। 
धनुष जो न उठ सका, राक्षसराज रावण से,
टूट गया था पिनाक, राम के छूने भर से!

प्रेम से भरे हुए, रह रहे अवध के महल में,
पर राक्षस विध्वंश के लिए, जाना है वन में। 
सीता ने साथ निभाया राम का, छाया की तरह,
जानकी है शक्ति, बनी रावण वध की वजह। 

राम वन में भी प्रसन्न, सीता के परम मित्र,
स्वयं बनाकर पहनाते  पुष्प आभूषण विचित्र। 
वनवास में राम सीता लक्ष्मण रहते हैं आनंदित,
सर्वत्र है प्रसन्नता, सम्पूर्ण वातावरण कुसुमित।  

नारी सुलभ मन, स्वर्ण मृग के लिए ललचाया,
सीता समा चुकी अग्नि में, यहाँ मात्र छाया!
राम ने सीता से, पहले ही किया था वार्तालाप,
राक्षसों से होगा युद्ध, अग्नि में रहो अब आप। 
रावण ले गया सीता को कर के अपहरण,
राक्षस बुद्धि है यही, न वरण, न ही रण। 

रुक्मिणी ने किया था कृष्ण का वरण,
इसलिए कृष्ण ने किया, रुक्मिणी हरण। 
गांधारी ने आर्य मर्यादा के लिए किया वरण,
क्योंकि भीष्म ने गांधार से किया था रण। 

राम सीता के विरह में वन वन भटकते हैं,
मानव जीवन में प्रेम का आदर्श प्रस्तुत करते हैं। 
करते है संगठन, वनचर और वानर जन का,
प्रेम की अग्नि है मन में, पता करें अब सीता का। 

वर्षा ऋतु में राम प्रकृति को देख कहते हैं,
सीता के बिना मेरे मन को मेघ डराते हैं। 
घन घमंड नभ गरजत घोरा। 
प्रिया हीन डरपत मन मोरा॥

सीता का तन तो विरह अग्नि से जल जाता,
यदि अश्रु जल से निरंतर, बदन न  भीगा रहता। 
हनुमान ने सुनाया राम को, सीता जी का हाल,
रावण वध का निश्चय, कर चले कृपानिधान। 

प्रेम की राह में आया. हर विघ्न दूर करना था,
सर्व जन हित हेतु,  रावण का नाश करना था। 
प्रेम की अमर कहानी की, अनुपम स्मृति,
मानव जाति के लिए, रची यह कैसी कृति!
बना दिया पुल भारत भूमि से लंका के लिए,
लाखों वर्ष बीते, रामसेतु के अवशेष बचे हुए। 

प्रेम की मर्यादा में महत्वपूर्ण प्रेमी का सम्मान,
हुई अग्नि परीक्षा, समाज में सदा रहे मान। 
सीता को अग्नि से ही निकल कर आना था,
छाया को तो अग्नि में ही समा जाना था। 
सम्मान के लिए, अपने प्रेमी के मान के लिए,
किया समय अनुकूल निर्णय, त्रेता युग के लिए। 

अवध में राज सुख से करने लगे,
वन के कठिन दिन बिसरने लगे। 
लेकिन प्रेम की पूर्णता में सदा वियोग,
प्रेमी का प्रेमास्पद से यही सच्चा योग। 

तन रहे साथ जब, प्रेमी दिखता है एक जगह,
लेकिन विरह के क्षणों में, प्रेमी ही सब जगह।  
हर आहट पर लगता है, कहीं प्रेमी ही तो नहीं,
हर आकृति को देखकर, कहीं यह वही तो नहीं। 
प्रेम की पराकाष्ठा में, उपस्थिति मात्र प्रेमी की, 
नित्य मिलन और नित्य विरह, अद्भुत है स्थिति। 

राधा और कृष्ण का प्रेम, 
कृष्ण और रुक्मिणी का साहचर्य,
द्रौपदी का वनवास में  पांडवों का साथ, 
कुंती का वन में  अकेले पांडवों का पालन,
राधा, रुक्मिणी, द्रौपदी, कुंती या और अनेक,
सीता में सभी गुण समाहित, इसीलिए वह एक। 
राम ने किया एक पत्नीव्रत का पालन,
सीता ही है शक्ति सदा, राम मात्र कारण। 


प्रेम के वशीभूत, सदा रहते हैं राम,
प्रेम करो सबसे, क्योंकि सभी में है राम। 
प्रेम की पहचान, होती है देने के भाव से,
कोई माँग शेष नहीं,  प्रेम की स्मृति है भाव से। 
ऐसे प्रेम के प्यासे हैं, श्री कृष्ण और श्री राम,
जो हो जाए सीता-राधा, आ जाएँगे राम श्याम।