Tuesday, August 20, 2019

आत्मालाप

दुःख और सुख शाश्वत है जीवन में,
ऐसा मैंने मान लिया था। 
लेकिन दुःख से छुटकारा पाना तो मैं भी चाहता था। 
जो चाहा वो मिल जाये, लेकिन लोभ बढ़ता जाये,
लोक मर्यादा के विरुद्ध चाहत भी किसको बतलाये। 
जो लोक सोचे वैसा जीवन सुख पूर्ण होता जाये,
भीतर का दुःख , कैसे किसको समझाये ?
जहाँ भी दुःख का गान किया, अपनी अस्मिता का क्षरण किया,
ऐसा जीवन सुन्दर लेकिन, उसमें दुःख इतना भरा,
कहने को सारे सुख,लेकिन मन के भीतर कांटा गड़ा। 

ऐसा जीवन जीते जीते , पुस्तकीय ज्ञान भी पा लिया।
औरों को मार्ग दिखाने का दम्भ भी मन में जगा लिया। 
इतना ज्ञान कि ऐसा लगता धर्म का अर्थ भी समझ लिया। 
आत्म ज्ञान भी मन की एक अवस्था, ऐसा मान लिया। 
ऐसा लगा कि बुद्धि के द्वारा समझ सब आ गया,
मानव प्रकृति के वश मे , यह 'सत्य' समझ में आ गया। 

लेकिन गुरुदेव के दर्शन से, आत्म ज्ञान का सत्य पता चला। 
आत्म ज्ञानी के दर्शन से, शास्त्र का सत्य पता चला। 
आत्म ज्ञान है, मन बुद्धि और प्रकृति के परे ,
इसे जानना है असंभव, इसीलिए मन प्रयत्न न करे ,
मन की मृत्यु है आत्म ज्ञान ,
स्वयं की वास्तिवकता का ज्ञान,
प्रकृति के वश में देह रहेगी सदा ,
लेकिन मुक्त हो जायेगा जो सदैव ही मुक्त है,
जिसे भ्रान्ति हो गयी है, स्वयं को मानता है देह,
सूक्ष्म शरीर जो बार बार धारण करता है नयी स्थूल देह,
आत्मा ने किया है तादात्म्य सूक्ष्म शरीर से ,
कारण है इसका कारण शरीर, जो मूल कारण है,
यह सुक्ष्म शरीर के परे है, इसीलिए इसे बुद्धि से नहीं समझ सकते है। 


सुख दुःख का अनुभव करता है सूक्ष्म शरीर,
यही यात्रा करता है, संस्कार और स्मृतियों के रूप में,
जीव के साथ, जो इससे जुड़ा रहता है, इसे अपना मान कर,
अनुभव करता है , सुख दुःख का इस तादात्म्य के कारण। 
सूक्ष्म शरीर है प्रकृति का अंश, इसी लिए जड़ है,
यह तादात्म्य ही इसकी ऊर्जा का स्त्रोत है। 

साक्षी भाव इस तादात्म्य के संस्कार को शिथिल करता है,
इसीलिए सुख दुःख का अनुभव स्वयं को होने से बचा पाता है। 
लेकिन प्रकृति का वश अधिक होने के कारण ,
साक्षी भाव स्थिर नहीं रह पाता है। 
ऐसे में प्रार्थना के द्वारा व्यक्ति को सम्बल मिल पाता है,
और सुख दुख या आवेग से व्यक्ति बच जाता है। 

यह सब जानते हुए, भी प्रकृति का आकर्षण नहीं छूट पाता है,
बार बार व्यक्ति आवेग के प्रवाह में बह जाता है,
आवेग के प्रवाह में बहने का जन्म-जन्मान्तर का अभ्यास  है। 
इससे पार पा सकने के लिए, करना विपरीत अभ्यास है। 

साक्षी भाव और प्रार्थना, आवेग का प्रवाह,
और आवेग शांत होने पर पुनः साक्षी भाव और प्रार्थना। 
धीरे धीरे साक्षी भाव और प्रार्थना का समय बढ़ता जाये,
आवेग के प्रवाह में समय कम होता जाये ,
कर्त्तव्य सम्पादन में अधिकाधिक समय लगे,
मिथ्याचारिता से जीवन दूर रहे,
ऐसे ही किसी दिन प्रार्थना होगी स्वीकार ,
और परम से होगा जीवन में साक्षात्कार,
उसके बाद आवेग का प्रवाह कुछ न कर पायेगा,
यह जीवन परम शांति से परिपूर्ण हो जायेगा। 
यात्रा अनंत की चलती रहे अनंत,
जीव का शाश्वत आनंद  बढ़ता रहे अनंत। 

CODE SIMPLIFIED: LIFE - (A Talk)

interesting है ना !
LIFE तो simple ही तो है |  नहीं ?
अच्छा कितने लोग कहते हैं की life simple है ?
हाथ खड़े करके बताओ !

हाँ, और अब कितने लोग कहते हैं कि life simple नहीं है | 
हाथ खड़े करके बताओ | 

अच्छा, ऐसे कितने लोग हैं जिन्होंने दोनों options में ही हाथ खड़ा नहीं किया 
होता है confusion, 
सच बोलना बेहतर है, दूसरे को देखकर हाथ खड़ा करने से | 
हाथ खड़े करके बताओ | 

तो अब लेकिन यह तो सभी चाहते हैं ना कि life simple हो !
कमसे कम इतने साल जीने के बाद तो निश्चित ही ऐसा सभी चाहते हैं | 
actually हम जीना चाहते हैं, लेकिन बार-बार भूल जाते हैं | 
क्या भूल जाते हैं ?

जीना भला कोई कैसे भूल सकता है ? साँस तो खुद ही चलती रहती है | 
तो देखो यह तो प्रकृति की सबसे बड़ी देन है कि सांस खुदबखुद चलती है | 
वरना तो हम खाना भूल जाते हैं, पीना भूल जाते हैं,
कोई आश्चर्य नहीं कि हम साँस लेना भी भूल जाते और कब के ही यह दुनिया छोड़ चुके होते | 

अच्छा life में वर्तमान तो हमेशा simple ही होता है !
है ना,
क्षण मात्र का ही तो है,
जो कुछ मैं अब तक बोलै, सब भूतकाल हो चुका,
वह अब सिर्फ आपकी स्मृति में है,
जो आगे बोलूँगा, उसकी मात्र कल्पना है, 
कल्पनां भी स्मृति का ही  परिणाम है | 

अभी, यह अभी का क्षण मूलयवान है,
पर इसकी कीमत हम नहीं जानते,
सही तो है, ऐसा क्या कीमती होने जा रहा है इस क्षण में,
क्या कोई लाख रु देने वाला है अभी इस क्षण में ?
लेकिन बस इन चार पंक्तियों में अनमोल सूत्र छिपे है,
life को simple करने के, जानने के, और simple बनाने के | 

पहला सूत्र अभी,
दूसरा सूत्र, कीमती क्षण है, लेकिन कैसे ?
इसलिए नहीं कि कोई अभी आपको लाख रु देगा,
बल्कि इसलिए की,
मान लो अगले 5 मिनट में मौत आने वाली है,
फिर 
कोई लाख रू दे, वो बेहतर है,
या मरते मरते अपने बच्चों से एक बार बात कर ले,
अपने जीवन साथी को गले लगा लें ,
एक बार उसको बता दें ,
मुझे तुमसे जितना प्यार है, उतना कभी व्यक्त ही नहीं हो पाया,
अपने माता पिता को धन्यवाद कर ले,
जितना आपने दिया, उसका एक अंश भी सेवा नहीं कर पाए,
अपने भाई बहन को बता दे, कि सब लड़ाइयां झूठी थी,
दिल में तो अथाह प्यार भरा पड़ा है,
अपने दोस्तों को एक फ़ोन करके thank you कह दें,
काश ये 5 मिनट थोड़े से लम्बे हो जाये,
एक बार अपने मेरे पास आ जाये,
बस एक बार मरते मरते राम नाम मुख में आ जाये,
कोई तुलसीदल और गंगाजल दे जाये,
भले ही लाख रुपये मुझसे ले जाये | 
कितना कीमती यह क्षण है,
मौत की याद आते ही,
और मौत तो कभी भी आ सकती है | 
तो यह हुआ दूसरा सूत्र कभी भी,

पहला सूत्र था 'अभी'
दूसरा सूत्र 'क्योंकि कभी भी'

सारी की सारी complexity भविष्य की कल्पना और अतीत की स्मृति में है | 
जब भी कोई कुछ मन के विपरीत कहता है या करता है,,
मन तीन तरह से react करता है -
यह व्यक्ति मेरे साथ ऐसा व्यवहार कितनी बार कर चूका है, आगे भी ऐसा ही करेगा,
मेरे साथ ऐसा व्यवहार पहले फलां फलां ने भी किया है, आखिर कब तक सहन करुँ,
और इसके मन में मेरे प्रति सम्मान नहीं है (यदि छोटा है), स्नेह नहीं है (यदि बड़ा है), और इसे मेरी परवाह नहीं है (यदि समान स्तर पर है) | 
और स्मृति के पेट्रोल से भरे टैंक में दियासलाई लग जाती है,
और हम ऐसा react करते हैं, जो कि complexity को जन्म देता है, या बढ़ा देता है,
हल क्या है ?
तीसरा सूत्र 'अ'भी नहीं '
react करना है, लेकिन अभी नहीं | 
थोड़ा समय मन को दिया, शांत  बाद react किया,
तो ढंग बदल जायेगा, वही reaction सकारातमक बन जायेगा,
आपकी और सामने वाले के सम्बन्ध की गुणवत्ता बदल जाएगी,
quality बदल जाएगी, life में जीने का मज़ा बढ़ जायेगा | 

तीसरा सूत्र बड़ा काम का है, 
दुसरे से व्यवहार करने में ही नहीं,
अपने मन से व्यवहार करने में भी | 
घर से shopping का plan बनाया, list बनाई , बजट बनाया,
दुकानदार बड़ा चतुर होता है,
window में वो सजाता है, जो मन को ललचा दे,
और आपका shopping plan, list , budget सब बदलने लगता है | 
बच्चे, नित नई फरमाइशें लाते है,
online sales और discounts ललचाते हैं ,
आपको याद रखना है, तीसरा सूत्र - 'अभी नहीं' 
पहले shopping list ,plan ,बजट,उसके बाद reaction करना है |

और अब चौथा और आज का अंतिम सूत्र - 'कभी नहीं'
अपने को धोखा कभी नहीं ,
झूठ बोलना पड़ता है, लेकिन औरों से,
खुद को बोला झूठ life को complex बनाता है | 
मन - मस्तिष्क से आवाज आ रही है, अब यह situation manage होना मुश्किल है,
नहीं - नहीं सब हो जायेगा ,
देखते हैं, कोई तो हल निकलेगा,
सोचो positive, मैं नहीं कह रहा कि उम्मीद छोड़ दो,
लेकिन खुद को धोखा मत दो,
यह भी सोचो कि अगर हल नहीं हुआ तो क्या होगा ? 
plan B बनाओ, सब कुछ घट सकता है इस संसार में |
कहा गया है - अनहोनी होती नहीं, होनी हो सो होय | 
loss, death सब कुछ होना संभव है,
यदि हो ही जाये, तो क्या होगा ? उस पर विचार करो,
इस तरह से अपने धन, संपत्ति एवं परिवार को व्यवस्थित करो कि,
आप जीवन पर focus कर सको | 
खुद को इस जीवन की सच्चाई से रूबरू होने दो,
सब कुछ यहाँ घट सकता है,
इसलिए plan B पर हमेशा विचार करो | 
सफलता के साथ असफलता के लिए भी खुद को तैयार करो,
और पूरी लगन से सफलता के लिए काम करो | 
अपने को धोखा मत दो कि मेरी ताकत चुक गयी है,
पुरे दम से लगे रहो, और फल जो भी हो,
सफलता या असफलता के लिए तैयार रहो | 
अपने को धोखा मत दो कि,
मैँ असफल नहीं हो सकता हूँ |
और निराशा का रास्ता अपनाकर यह धोखा भी मत दो कि ,
मैं सफल नहीं हो सकता हूँ | 
इसलिए चौथा और अंतिम सूत्र - 'कभी नहीं' | 

याद रखो,
पहला सूत्र - अभी (वर्तमान में है जीवन Simple Life)
दूसरा सूत्र - क्योंकि कभी भी (मौत खड़ी है आगे इंतज़ार में)
तीसरा सूत्र - अभी नहीं (delay your reactions - especially negative ones )
और चौथा सूत्र - कभी नहीं (Never deceive yourself - work for success, be ready with plan B.  

धन्यवाद | 

Sunday, May 5, 2019

मुक्ति - FREEDOM (A peep into time - written on 25 July 1987) 5 May 2019

अगर तुम चाहते हो,
एक मुक्त जिंदगी
- काल गणना का हर साधन मिटा दो,
- दुनिया के सारे कैलेण्डर हटा दो,
- घड़ियों को बीते कल की यादें बना दो,
- और हर घंटाघर की मंजिल गिरा दो।

फिर रहेगा
सिर्फ कल, आज और कल
एक दिन
होगा बराबर
एक घंटे, मिनट और सेकंड के।

आदमी स्वतन्त्र होगा,
समय का न दास होगा,
वक्त के बंधन न होंगे,
वक्त का इंतज़ार न होगा,
न वक्त गुजारेगा आदमी,
न ही वक्त गुजारेगा आदमी को,
खुले आसमां में उड़ेगा आदमी,
मगर न भूलेगा जमीं को।

साल, महीने और सप्ताह न होंगे,
किन्तु,
जन्म और मृत्यु होते रहेंगे।
काल गणना का माध्यम जीवन ही होगा
मूल्याङ्कन मृत्यु के बाद ही होगा
अपने अतीत के लिए
मनुष्य को एक दिन से अधिक
पछताना न होगा
एक दिन से अधिक के लिए
भविष्य का तनाव
सहना न होगा।

लेकिन यह दास.
पीढ़ियों से गुलाम
ऐसी मुक्ति पाना पसंद नहीं करेगा
रेंगने का आदी
समय का कीड़ा
उड़ने का मौका बेकार खो देगा।
सिर्फ वही नहीं,
विश्व की मेधा
जिसे सम्मानित किया जाता है,
समय-समय पर
समय के बिना
इस जहाँ पर
हुकूमत कैसे कर पाएगी
इसीलिए यह बदलाव सह न पायेगी।

आदमी को
समय का डर दिखाकर
पंगु बना दिया गया है
उसकी मानसिक व शारीरिक
क्रियाओं को सीमित कर दिया गया है
वर्षों की मेहनत के नाम पर
सभ्यता के आवरण में
बंधनों को जकड़ दिया गया है
भविष्य को खुशनुमा बनाने के लिए,
वर्तमान का मन मसोस दिया गया है
अतीत की रक्षा और
उससे सीखने के नाम पर
आज को मसल कर दबा दिया गया है।

मगर परिणाम क्या रहा है
अभी भी बगावत के स्वर उठ रहे हैं
अब भी कसमसा रहे हैं
विद्रोही इन जंजीरों के जाल में
पर भला इन्हें कौन समझाए?
सैंकड़ो वर्षों के बंधन कब
कुछ वर्षों में टूट पाए है
हाँ,
जो चिंगारियाँ उठ रही है
वो भड़ककर शोला जरूर बनेगी
आज नहीं तो कल
आने वाली पीढ़ियों को
एक खुला आकाश उड़ने के लिए
और
एक सुदृढ़ जमीं रहने के लिए
बनाने का अवसर देगी।

उस वक्त जरुरत होगी
जहाँ में एक ऐसे इंसान की
वर्तमान के शैतान और
भविष्य के भगवान की
जो
लपटों का रुख मोड़ दे
और एक-एक कर सारे बंधन तोड़ दे
बना दे स्वतन्त्र संसार
न देश काल की सीमा हो,
न हो व्यथा दुत्कार।
इस स्वप्न को
यथार्थ में कौन बदलेगा
सर्वहारा का मसीहा
या
भारत का राजपुत्र
अथवा
कोई विज्ञान-पुत्र
समय ही बताएगा।