Sunday, January 8, 2023

राम को प्रणाम

रामायण है प्रारंभ से अंत तक, प्रेम की कथा, 
शुरुआत में है शिव शक्ति की प्रीत की व्यथा। 
प्रेम में जब उपजता है संदेह और आता है विपरीत परिणाम, 
सती का होता है पुनर्जन्म, प्रेम में नहीं आता व्यवधान! 
पार्वती का दृढ़ निश्चय मिला देता है दोनों को फिर से, 
शिव के साथ पार्वती का मिलन, हो हम सब के मन में।
श्रद्धा और विश्वास का मिलन जब श्रोता के मन में हो जाए, 
राम कथा में प्रवेश करने का चित्त अधिकारी हो जाए। 

मनु और शतरूपा का प्रेम इतना कि, लगे संग तप करने में, 
विधि हरि हर सब हार गए, आएंगे परब्रह्म अब पुत्र रूप में।
दशरथ और कैकयी का प्रेम तो जग विदित है, 
कौशल्या है पटरानी, उनका मात्र राम में चित्त है,
सुमित्रा को प्रेम मिला महारानी कौशल्या से, 
प्रेम का प्रतिसाद मिला राम को सौमित्र से। 

राम का प्रेम सभी से है, राम से प्रेम सभी को है, 
लेकिन महाविष्णु की चिरसंगिनी, महालक्ष्मी सीता है। 
प्रेम जो प्रस्फुटित होता है, सीता और राम के पुष्पवाटिका में दर्शन से, 
पुष्ट हो उठता है, राम के धनुष भंग कर स्वयंवरमें विजयी होने से। 

उर्मिला और लक्ष्मण की प्रेम गाथा भी यहाँ प्रारम्भ हो जाती है, 
असली वनवास भोगती है उर्मिला, अवध में चौदह वर्ष बिताती है। 
उर्मिला के तप से ही लक्ष्मण कर पाते हैं राम की अनथक सेवा, 
सुहागिन उर्मिला के चौदह वर्ष, जैसे जी रही हो एक विधवा। 

प्रेम में मिलन हो तो प्रेम का आनंद विकसित हो उठता है। 
लेकिन जब प्रेम में विछोह हो, तो प्रेम अनंत गुना बढ़ता है। 
सामने जब प्रेमी हो, तकरार भी हो जाती है, 
पर जब दूर होते हैं, प्रेम की याद रह जाती है। 

सीता तो साथ वन में भी चली गई, विरह का दुःख न सहना था उसे, 
लेकिन भाग्य की विडंबना ऐसी की, विरह का दुःख सहना पड़ा उसे। 
विरही राम ने, प्रेम का अनुपम स्मारक बना दिया, 
लंका से सीता को लाने हेतु राम सेतु बना दिया। 

रावण के प्रति मंदोदरी का प्रेम भी अनुपम था, 
सीता को लौटाने हेतु रावण को दिया परामर्श था। 
मेघनाद के साथ सुलोचना, जैसे लक्ष्मण के साथ उर्मिला, 
रणक्षेत्र में जो भी जीता, प्रेम दोनों को भरपूर मिला। 
प्रेम किया था शूर्पणखा ने भी अपने पति विद्युजिह्न से, 
पति की मृत्यु का बदला, आख़िर ले लिया था रावण से। 

भ्रातृ प्रेम का अनुपम उदाहरण, रावण और कुम्भकर्ण, 
नहीं दिया समाज ने आदर, रहा घर का भेदी विभीषण। 
भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न रहेंगे आदर्श सदा, 
राम जैसा भाई इसीलिए उन सबको मिला। 

ऋषि मुनि राम के प्रेम में इस तरह से व्यथित हुए, 
कि कृष्णावतार में वे सभी गोपी रूप में अवतरित हुए। 
शबरी का जीवन है अनंत प्रतीक्षा का प्रमाण, 
हर दिन राह बुहारती, आयेंगे राम, गुरुवाक्य प्रमाण। 

जटायु का मित्र दशरथ से प्रेम ऐसा था, 
सीता हेतु रावण से वृद्घ लड़ पड़ा था। 
हनुमान का अनन्य प्रेम है श्री राम से, 
सीना भी चीर दो तो, दर्शन होते हैं आराध्य के। 

 यह प्रेम की गाथा है रामायण, 
 प्रेम ही संदेश राम का, प्रेम ही जीवन दर्शन।

Thursday, December 8, 2022

राम को प्रणाम

राम प्रिय लगते हैं सबको, अपने ही लगते हैं हमको , 
अपने-अपने, अपने राम, स्वीकारो सबका प्रणाम। 

जब अपनी लीला हेतु धरा पर प्रकट हुए थे राम, 
कौन पहचान पाया? किसका हुआ पूर्ण काम। 
अनंत प्रतीक्षा कर रहे थे, अहिल्या और शबरी, 
भक्त जनो के प्रेम हेतु, ही यहाँ लीला करी। 

मारीच जैसे राक्षस भी बने लीला के सहचर, 
राम के समक्ष पुनः लौट आया निशाचर। 
विश्वामित्र यज्ञ की रक्षा हेतु, गए राम लक्ष्मण, 
ताड़का और सुबाहु मारे गए, ख़त्म हुआ रण। 
मायावी मारीच जान बचाकर, भागा वहाँ से, 
लेकिन मारीच का भाग्य, जागा यहाँ पे। 

एक बार फिर चला आया मारीच दंडकारण्य में, 
चौदह वर्ष वनवास हेतु राम थे जहाँ अरण्य में। 
धारण किया पशु रूप, दो राक्षसों के साथ, 
राम ने छोड़ा बाण, मारीच भागा समुद्र के पास। 
एक बार फिर, मारीच का भाग्य जागृत हुआ, 
त्याग सारे दुष्कर्म, राम भक्त तपस्यारत हुआ। 

प्रभु लीला में शूर्पणखा का हुआ आगमन, 
लक्ष्मण से हुई दीक्षित, काट दिए श्रवण। 
नासिका कटी, अहंकार हुआ नष्ट, 
रावण के कुलसहित नाश का परामर्श। 
सीता हरण की युक्ति और सौंदर्य का लालच, 
रावण अपने नाश से, अब नहीं सकेगा बच। 

रावण ने कहा मारीच को, स्वर्ण मृग बन जाओ, 
सीता के मन में, नारी सुलभ लालसा जगाओ। 
मारीच ने समझाया रावण को, 
यह आमंत्रण है लंका के विनाश को, 
लेकिन विनाश काले विपरीत बुद्धि, 
नहीं समझा रावण अहंकारी दुर्बुद्धि। 
उल्टे मारीच को ही मारने चला, 
अब मारीच को ऐसा लगने लगा, 
इस राक्षस के हाथों मरने से बेहतर, 
मैं मरूँ प्रभु राम के हाथों वहाँ जाकर। 

अनुपम सुंदरता, मायावी बन गया स्वर्ण मृग, 
ठहर गयी सीता, देखते रहे अपलक दृग, 
जाओ प्रिय राम यह मृग जीवित या मृत ला दो, 
मेरा मन हुआ आकर्षित, यह इच्छा पूरी कर दो। 
राम ने देखा माया मृग, लीला अपनी करने लगे, 
कभी पास कभी दूर, मृग के पीछे दौड़ने लगे। 
समझाया लक्ष्मण को, न रहे सीता को एकांत, 
राक्षस फिर रहे वन में, अब वातावरण अशांत। 

माया मृग मारीच दूर दौड़ जाता, 
फिर ठहर कर पीछे मुड़ जाता, 
अपने इष्ट प्रभु राम को निहारता, 
झाड़ी की ओट में छिप जाता। 
आज मारीच का मन प्रमुदित है, 
प्रभु को पाकर प्रफुल्लित है, 
जीवन में यह अनुपम अवसर है, 
मन चकित, व्यथित, आकर्षित है। 

कितना दूर चला आया, सीता का ध्यान आया, 
राम ने क्रोधित हो, अब मृग पर तीर चलाया। 
हुआ लक्ष्य भेद, मारीच ने प्रकट की निज देह, 
राम का स्मरण किया, मन में बरसा स्नेह। 
लेकिन रावण के प्रति, अपना वचन स्मरण रहा, 
हा सीते! हा लक्ष्मण! की पुकार करने लगा। 
 राम को तुरंत ही राक्षस का छल प्रकट हो गया, 
लक्ष्मण पीछे आयेगा, अब संकट आ गया। 
लक्ष्मण मिले राह में, पहुँचे कुटिया के पास, 
सीता बिना सूनी कुटिया, हो गए राम उदास। 

जब सीता के मन में आया माया मृग का लोभ, 
परिणाम हुआ सीता और राम का वियोग। 
हमारी आत्मा ही है सीता, प्रभु को चाहती सदा, 
किंतु माया के लोभ से, मिलन नहीं होता यहाँ। 
माया मृग मारीच खेलता रहता हमारे जीवन में, 
कभी प्रकट, कभी लुप्त, भरमाता रहता हमें। 
भटकाता रहता हमारे मन को, दौड़ते रहते हम, 
ठहर नहीं पाता. माया के प्रति आकर्षित मन। 

यदि मन इष्ट राम की भक्ति में लीन हो जाए, 
मारीच के मन की तरह यह ध्यान में लग जाए। 
तब निश्चित ही प्रभु राम, कर देंगे लक्ष्य संधान, 
सम्पूर्ण अस्तित्व हमारा, करे राम को प्रणाम।

Tuesday, November 8, 2022

राम को प्रणाम

राम विराजित उर अंतर में, 
नगर, ग्राम और वन प्रांतर में, 
अनंत ब्रह्मांड व अनंत शून्य में. 
आए धरा पर मानव रूप में। 

सर्व सुलभ सबके हृदय में, 
स्वयं प्रमुदित सबके मन में, 
प्रकट हुए जब त्रेता युग में, 
दशरथ कौशल्या के अवध में। 

मनु शतरूपा ने किया, सतयुग में तप अपार, 
वर देने हेतु आए, विधि, हरि, हर बार बार, 
लेकिन दोनो परब्रह्म की, प्रतीक्षा करते रहे, 
आकाशवाणी हुई, शब्द ब्रह्म प्रकट हुए, 
आपके जिस रूप का, शंकर करते है ध्यान, 
दर्शन दीजिए उसी रूप में, हे परब्रह्म महान, 
प्रकट हुआ चतुर्भुज स्वरूप, प्रकाशित हुआ क्षेत्र, 
अपार ज्योतिर्मय स्वरूप, बरस रहे हैं नेत्र, 
माँगो वर आज राजन, तपस्या पूर्ण हुई, 
तुम्हारे समान सुत चाहिए, लालसा प्रकट हुई। 
अपने समान मैं स्वयं, इच्छा पूरी होगी तुम्हारी, 
त्रेता में राम के रूप में, खेलूँगा गोद में तुम्हारी। 

आए राम मानव रूप में, लीला करने लगे, 
माता पिता ऋषि मुनि, सभी भ्रमित होने लगे। 
अति सुंदर, अति गुणवान, सबके प्रिय सुजान, 
अवध छोड़ कर वन गए, करना है कल्याण। 
कर रहे प्रतीक्षा राम की, अनेकानेक भक्त, 
स्मरण करने का करते हैं, प्रयास संक्षिप्त। 

शबरी, जटायु, केवट, निषाद, सुग्रीव, बाली, जाम्बवंत, 
अत्रि, भारद्वाज, वाल्मीकि, अगस्त्य, सुतीक्ष्ण, शरभंग 
अनंत प्रतीक्षा कर रहे, हनुमान अपने आराध्य की, 
प्रतीक्षा पूरी हुई, विभीषण, राक्षस राज की। 
ख़र दूषण, शूर्पणखा, रावण और कुम्भकर्ण, 
अनेकानेक राक्षस, वनवासी, और ऋषि गण। 
वानर सेना, अंगद,, नल-नील बने सहायक, 
राम से मिलकर सभी के, जीवन हुए सार्थक। 

यहाँ अवध वासी हो रहे, राम के विरह में व्याकुल, 
चौदह वर्ष हो गए, प्रतीक्षा कर रहा सारा रघुकुल, 
कौशल्या, कैकयी, सुमित्रा, सबके मन विचलित, 
उर्मिला की प्रतीक्षा निरंतर, नयन हो गए थकित। 
भरत कह चुके हैं भ्राता को, अब न करना देर, 
अग्नि प्रवेश कर लूँगा, एक दिन भी नहीं ख़ैर। 

भरत रहते हैं कुटिया में, शत्रुघ्न करते देखभाल, 
कहाँ मांडवी, कहाँ श्रुतकीर्ति, इन्हें नहीं ख़्याल। 
राम सीता लक्ष्मण की, राह तकता राजपरिवार, 
 अवध का जन जन अधीर, सबको है इंतज़ार। 

राम को भी अपनी अवध, आने का उत्साह है, 
भरत के पास आए हनुमान, आ रहे श्री राम है। 
अति आनंद उमड़ने लगा, आनंद बरसने लगा, 
कोई हँसा, कोई प्रसन्नता से, रूदन करने लगा। 

अमावस्या की अंधेरी रात, आज रोशन हो गई, 
अनगिनत दीपक जले, अयोध्या प्रकाशित हुई। 
आज मन रही दिवाली है, लौट आए श्री राम है, 
जन जन प्रफुल्लित यहाँ, कर रहा प्रणाम है। 

राम अनुपम उदार, प्रकट हुए अनेको रूप, 
आलिंगन में हर अवधवासी, कैसा दृश्य अनूप। 
अहा! कैसा अनुपम पुण्य, कैसी अद्भुत कृपा, 
कैसा भाग्य धरा पर, हर व्यक्ति का है जगा। 
 आओ! हम भी, इस आनंद में, मग्न हो जायें, 
करें राम को प्रणाम, राम के अपने बन जायें।

Monday, August 8, 2022

राम को प्रणाम

जननायक राम ने किया अनुपम प्रेम अपने भाई से,
त्यागी भरत, सेवक लक्ष्मण एवं वीर शत्रुघ्न से।
खलनायक रावण ने भी प्रेम किया अपने भाई से,
वीर कुम्भकर्ण से, लेकिन चिढ़ता था विभीषण से।

दुष्ट व्यक्ति को, राम नाम नहीं सुहाता है,अपने अहंकार के आगे, कुछ नज़र नहीं आता है।विभीषण का नीति उपदेश नहीं भाया रावण को,देश निकाला दिया लंका के आगामी शासक को।
हनुमान जब लंका गए थे, सीता का पता लगाने को,राम नाम अंकित घर देख, मिले थे विभीषण को।विभीषण उसी दिन घर का भेदी बन गया था,अशोक वाटिका में सीता का पता बताया था।रावण जैसा शक्तिशाली और अहंकारी राक्षस,क्यों नहीं मारा विभीषण को, क्यों रहा विवश ?क्या भाई का प्रेम, या अपनी प्रजा की रक्षा का दायित्व,अथवा विरोधी विचार को भी संरक्षण का औदार्य ?
सोने की लंका में प्रजा, भौतिक उन्नति से आनंदित थी,धर्म का विचार छोड़, सांसारिक भोग में लिप्त थी।ऐसे में कोई एकाध ही अति विकसित मेधावी होता है,जो धर्म का विचार करता है, प्रभु का स्मरण करता है।जब जीवन में सुख की बाढ़ आयी हुई हो,बहुमत अधर्म के साथ, प्रजा सोई हुई हो,नीति व धर्म का चुनाव विभीषण ही कर पाता है,अनीति के विपरीत परिणाम को सोच पाता है।अधर्मी और अन्यायी राजा, प्रजा का द्रोही होता है,अपने अहंकार के कारण, राज्य को नष्ट करता है।
विभीषण का द्रोह अपने भाई या मातृभूमि से नहीं है,लंका के सिंहासन का लालच भी कारण नहीं है।बाली को मार कर, लंका पार आ चुके हैं राम,सीता को लौटा दो, वरना लंका का अब होगा नाश।रावण को विभीषण की धर्म युक्त सलाह नहीं भायी,उसने तो भरी सभा में विभीषण को लात लगायी।जब भी अहंकार में अपने का, करता कोई अपमान,परिणाम में सदैव दुःख, विधि का यह नियम जान।
असमंजस है विभीषण को, किसकी चिंता करूँ?भाई और राजा की सुनूँ या मातृभूमि की रक्षा करूँ।राम के समक्ष रावण की होगी निश्चित हार,राम से मिलकर होगा, लंका की प्रजा का उद्धार।राम ने विभीषण को, लंका का राजा बना दिया,धर्म और मर्यादा हेतु, रावण को युद्ध में मार दिया।
ईश्वर की भक्ति जीवन का अंतिम ध्येय है।भौतिकता है प्रेय, आध्यात्मिक उन्नति श्रेय है।विभीषण को सप्त चिरंजीवी में मिला है स्थान,राम की भक्ति महान, हम करें राम को प्रणाम।

Friday, July 8, 2022

राम को प्रणाम

शूर्पणखा ने देखा राम का मनमोहक रूप,
मन स्तब्ध हुआ,  अप्रतिम, अतुलनीय पुरुष,
स्वप्न जैसे सत्य हुआ,
काम जाग्रत हुआ,
कर लिया निश्चय यही,
पाना इसे पति रूप में अभी।

पूर्व जन्म की अप्सरा नयनतारा,
जन्मी राक्षसी रूप में ऋषि श्राप से,
लेकिन ऋषि होते है करुण,
और बदलते हैं शाप को वरदान में। 
राक्षसी रूप में पाओगी दर्शन प्रभु राम के,
सार्थक होगा धरा पर राक्षस जन्म भी,
करते है ऋषि मुनि, जन्मों तक तपस्या,
लेकिन सौभाग्य से होती है, यह कृपा कभी। 

पुलस्त्य ऋषि के कुल में हुआ जन्म,
कुम्भकर्ण व दशानन की थी बहन,
पति विद्युज्जिह्न का वध हुआ रावण से,
ख़रदूषण के साथ रहने लगी दंडकवन में !
ख़र, दूषण व त्रिशिरा जैसे राक्षस भाई,
करते थे राज जनस्थान में, सभी आततायी। 

शूर्पणखा का भाव, राक्षस संस्कृति जैसा था,
काम वासना ही संग हेतु पर्याप्त कारण था। 
लेकिन आर्यपुत्र राम हैं एकपत्नीव्रत धारी,
नहीं स्वीकारा काम निमंत्रण, चाहे जो हो नारी। 
रामानुज लक्ष्मण के पास जब वह गयी,
अनायास ही नाक कटी, वह दीक्षित हो गयी। 

अब तो उसे याद आ गया अपना अतीत,
जाग्रत हो गयी अपने पति से प्रीत।
अब अवसर है, राक्षस कुल का हो सर्वनाश,
इसी में है उनका कल्याण, आई भाई के पास।  
सम्पूर्ण सेना और ख़र दूषण, सभी मारे गए,
पहुँची लंकेश के पास, सभी धिक्कारे गए। 

दिया नीति का उसने सुंदरतम उपदेश,
रावण को कहा याद नहीं, तुम्हें कोष और देश। 
विद्या विनय बिना, सत्कर्म हरि समर्पण बिना, 
राज्य नीति बिना , एवं धन धर्म बिना। 
सब व्यर्थ हो जाते हैं, बिना फल दिए,
मानो ये सब पाने में, व्यर्थ ही श्रम किए। 
विषय संग से सन्यासी, बुरी सलाह से राजा,
अहंकार से ज्ञान और मदिरा पान से लज्जा। 
अकड़ से प्रेम और मदहोशी से गुणवान,
हो जाते ये सभी नष्ट, इसे रावण तू सत्य जान। 
शत्रु, सर्प, अग्नि, पाप और जो हो समर्थ या स्वामी,
इन्हें छोटा समझने की भूल, पड़ती है, भविष्य में भारी। 

रावण को कराया सीता की सुंदरता का बोध,
सर्वनाश की राह पर, दशानन का जागा क्रोध। 
शूर्पणखा ने लक्ष्मण से, दीक्षा को सफल बनाया। 
वर्षों की तपस्या के बाद, शिव से वरदान पाया। 
कृष्णावतार में कुब्जा बन, दिया उन्हें अंगराग,
पाया कृष्ण का साथ अनुपम, धन्य हो गए भाग। 

यदि जीवन में किसी भी तरह राम आ जाए,
उनसे प्रीत लगे और मन का रिश्ता जुड़ जाए। 
स्वतः होता जीवन सफल, बनता है सब काम,
राम से जुड़े यह मन, करें राम को प्रणाम।

Wednesday, June 8, 2022

राम को प्रणाम

अनेक बार यह विचार  आता है, जब आगे बढ़ता हू,
क्या कुछ पीछे छूट जाता है, और क्या मिल जाता है?

चला विश्वामित्र के संग, माता-पिता व अयोध्या छोड़ कर,
मिल गयी जीवन संगिनी सीता, शिव धनुष पिनाक तोड़ कर। 
चला वनवास के लिए, पीछे अवध का राज-पाट  छोड़ कर,
संग सीता लक्ष्मण आये,निषादराज व केवट से प्रेम जोड़ कर। 

चला  भरत अयोध्या से, मिला हुआ राज्य छोड़ कर,
ली चरण पादुका, अमित प्रेम का बंधन जोड़ कर। 
चला जंगल में आगे चित्रकूट को छोड़ कर,
ले गया रावण, सीता को, मर्यादा तोड़ कर। 

आगे बढ़ा, शबरी का प्रेम मिला, हनुमान सा सेवक मिला,
लक्ष्मण की जीवन रक्षा का, भविष्य का सरंजाम मिला। 
फेंके दूर हिमालय में, शबरी के जूठे बेर, जो लक्ष्मण ने,
संजीवनी बूटी बन गए, जब हनुमान गए औषधि लेने। 

आगे बढ़ा किष्किंधा की ओर, शबरी को मुक्त कर,
मिला सुग्रीव संग अंगद से, बाली का वध कर। , 
चला किष्किंधा से लंका के लिए, वानर सेना जोड़ कर,
आ गया विभीषण लंका से, रावण का साथ छोड़ कर,
मिलते गए नए साथी, लीला के हर मोड़ पर,
मनुज लीला में आदर्श दिखाया, मोह बंधन तोड़ कर।

रावण को मार दिया, लंका का अभेध दुर्ग तोड़ कर,
अग्नि से प्रकट सीता को, स्वीकारा, सबने कर जोड़ कर। 
जननी और जन्मभूमि के लिए, चला स्वर्ण लंका छोड़ कर,
अपूर्व स्वागत अयोध्या में, दिए जला व पटाखे फोड़ कर। 

फिर से राज्य अयोध्या में, अपने परिवार, प्रजाजनों का साथ,
वही का वही, क्या छोड़ा, क्या पाया, सब कुछ है मेरे पास।
यदि जो राज्य किया होता, वन में न भेजा गया होता,
अन्य रघुकुल राजा की तरह, भुला दिया गया होता। 
मेरा जीवन भी है ऐसा ही, खोने और पाने का खेल,
राज्य, धन, साथी छोड़ने और और प्रेम का मेल।  

मैं सब में समाया, जीव या संसार, सब मेरी माया,
जिसने निरंतर ढूँढा, अपने दिल में राम को पाया।
तो यह पाने और खोने का, छोड़ने और जोड़ने का,
खेल है शाश्वत, सम्बन्ध राम से केवल प्रेम का। 
जब करते हैं संत, लीला हेतु मुझे प्रणाम,
लिख देते हैं साथ में, राम से बड़ा राम का नाम।

Sunday, May 8, 2022

राम को प्रणाम

राम है हमारे, अब हम भी हो जायें राम के,
शरण हो जायें राम की, गुण गायें हम राम के। 
राम का जीवन सिखाता है हर पल हमें,
वीरता और नम्रता, जीवन में चाहिए हमें। 

राम की प्रतीक्षा, कर रहे थे दुखी अनेक,
जड़ बनी हुई शिला सम, अहिल्या थी एक। 
गौतम पत्नी से हुआ, अनजाने में एक अपराध,
इंद्र ने मर्यादा भंग की, ऋषि ने दिया उन्हें शाप। 

राम जा रहे थे संग विश्वामित्र, देखने स्वयंवर,
राह में आ गया था, गौतम ऋषि का आश्रम !
देखो राम! यह परित्यक्त, ऋषि पत्नी है यहाँ,
शील भंग किया पापी इंद्र ने, मिली इसे सजा,
ऋषि ने इसे आश्रम में, जड़ बनाकर छोड़ दिया,
समाज-बहिष्कार से, शिला-सम जीवन हुआ। 

तुम राम हो, धर्म के, पालक और संस्थापक हो,
धर्म पर आधारित सृष्टि, तुम नियामक हो। 
यदि सामाजिक कुरीति, हो धर्म के नाम पर,
करो सृजन नव रीति का, कुरीति पर वार कर। 
विश्वामित्र आगे बोले, इंद्र ने जो छल किया,
गौतम ऋषि ने अनजाने ही, अनुचित दंड दिया। 
तुम अपना लो समाज में फिर से,
इसे इसका उपयुक्त स्थान दो,
तुम राजपूत्र हो, मर्यादा पुरुषोत्तम,
पीड़ित मानवता के त्राण हो। 

आज्ञापालक राम ने, जाकर उन्हें प्रणाम किया,
उनके अनुपम तेज से, आश्रम आलोकित हुआ। 
अहिल्या जैसे जड़ हुई, सहमी सिकुड़ी बैठी थी,
जो सदियों से ना हिली, दुःख की वो गठरी थी। 
सहसा किसी मानव को देख, एक हरकत हुई,
समाज पुनः अपना लेगा, ऐसी हसरत जगी। 

दृष्टि उठी, देखा समक्ष, ऋषि विश्वामित्र को, 
भाई लक्ष्मण संग खड़े हुए, तेजोमय राम को। 
स्वतः दण्डवत प्रणाम किया, चरण रज का स्पर्श किया,
राम ने माता कहकर, अति आदर से सम्बोधित किया। 
अतीव आश्चर्य, वनवासी जन को होने लगा,
स्वतः समाचार, ऋषि आश्रमों में पहुँच गया। 
आए सब और हुए नतमस्तक, शिरोधार्य किया राम का निर्णय,
देवी अहिल्या को मिला सम्मान, हुई सुरक्षित और निर्भय। 

राम ने मर्यादा का पालन किया, मर्यादा को पुनर्स्थापित किया, 
जहाँ भी जो अनुचित हुआ,  उसका उचित पुनर्निर्धारण किया। 
परब्रह्म ने अवतार ले, किए थे आदर्श काम,
इसीलिए हम करते सदा, राम को प्रणाम।