नगर, ग्राम और वन प्रांतर में,
अनंत ब्रह्मांड व अनंत शून्य में.
आए धरा पर मानव रूप में।
सर्व सुलभ सबके हृदय में,
स्वयं प्रमुदित सबके मन में,
प्रकट हुए जब त्रेता युग में,
दशरथ कौशल्या के अवध में।
मनु शतरूपा ने किया, सतयुग में तप अपार,
वर देने हेतु आए, विधि, हरि, हर बार बार,
लेकिन दोनो परब्रह्म की, प्रतीक्षा करते रहे,
आकाशवाणी हुई, शब्द ब्रह्म प्रकट हुए,
आपके जिस रूप का, शंकर करते है ध्यान,
दर्शन दीजिए उसी रूप में, हे परब्रह्म महान,
प्रकट हुआ चतुर्भुज स्वरूप, प्रकाशित हुआ क्षेत्र,
अपार ज्योतिर्मय स्वरूप, बरस रहे हैं नेत्र,
माँगो वर आज राजन, तपस्या पूर्ण हुई,
तुम्हारे समान सुत चाहिए, लालसा प्रकट हुई।
अपने समान मैं स्वयं, इच्छा पूरी होगी तुम्हारी,
त्रेता में राम के रूप में, खेलूँगा गोद में तुम्हारी।
आए राम मानव रूप में, लीला करने लगे,
माता पिता ऋषि मुनि, सभी भ्रमित होने लगे।
अति सुंदर, अति गुणवान, सबके प्रिय सुजान,
अवध छोड़ कर वन गए, करना है कल्याण।
कर रहे प्रतीक्षा राम की, अनेकानेक भक्त,
स्मरण करने का करते हैं, प्रयास संक्षिप्त।
शबरी, जटायु, केवट, निषाद, सुग्रीव, बाली, जाम्बवंत,
अत्रि, भारद्वाज, वाल्मीकि, अगस्त्य, सुतीक्ष्ण, शरभंग
अनंत प्रतीक्षा कर रहे, हनुमान अपने आराध्य की,
प्रतीक्षा पूरी हुई, विभीषण, राक्षस राज की।
ख़र दूषण, शूर्पणखा, रावण और कुम्भकर्ण,
अनेकानेक राक्षस, वनवासी, और ऋषि गण।
वानर सेना, अंगद,, नल-नील बने सहायक,
राम से मिलकर सभी के, जीवन हुए सार्थक।
यहाँ अवध वासी हो रहे, राम के विरह में व्याकुल,
चौदह वर्ष हो गए, प्रतीक्षा कर रहा सारा रघुकुल,
कौशल्या, कैकयी, सुमित्रा, सबके मन विचलित,
उर्मिला की प्रतीक्षा निरंतर, नयन हो गए थकित।
भरत कह चुके हैं भ्राता को, अब न करना देर,
अग्नि प्रवेश कर लूँगा, एक दिन भी नहीं ख़ैर।
भरत रहते हैं कुटिया में, शत्रुघ्न करते देखभाल,
कहाँ मांडवी, कहाँ श्रुतकीर्ति, इन्हें नहीं ख़्याल।
राम सीता लक्ष्मण की, राह तकता राजपरिवार,
अवध का जन जन अधीर, सबको है इंतज़ार।
राम को भी अपनी अवध, आने का उत्साह है,
भरत के पास आए हनुमान, आ रहे श्री राम है।
अति आनंद उमड़ने लगा, आनंद बरसने लगा,
कोई हँसा, कोई प्रसन्नता से, रूदन करने लगा।
अमावस्या की अंधेरी रात, आज रोशन हो गई,
अनगिनत दीपक जले, अयोध्या प्रकाशित हुई।
आज मन रही दिवाली है, लौट आए श्री राम है,
जन जन प्रफुल्लित यहाँ, कर रहा प्रणाम है।
राम अनुपम उदार, प्रकट हुए अनेको रूप,
आलिंगन में हर अवधवासी, कैसा दृश्य अनूप।
अहा! कैसा अनुपम पुण्य, कैसी अद्भुत कृपा,
कैसा भाग्य धरा पर, हर व्यक्ति का है जगा।
आओ! हम भी, इस आनंद में, मग्न हो जायें,
करें राम को प्रणाम, राम के अपने बन जायें।