मन की दो धारा के स्थान पर एक ही धारा रह जाये तो हमें थकान नहीं होती है और हम आनंद का अनुभव करते है. लेकिन यह रुचिकर कार्य करते समय या खेलते समय तो आसानी से हो जाता है, लेकिन शेष समय पर ऐसा करना सामान्यतः नहीं हो पाता है. इसका एक आसान हल हिन्दू मनीषा ने शताब्दियों पहले से खोज लिया है.
अजपा जप - किसी नाम यथा ॐ या राम-राम आदि, अथवा किसी मंत्र यथा हरे राम या ॐ नमः भगवते वासुदेवाय आदि. का निरंतर जाप मन में श्वास के आवागमन की भांति चलता रहे.
यहाँ मंत्र या नाम उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि यह तथ्य कि मन हमेशा दो धारा में काम करता है. अतः एक धारा तो हमारे वर्तमान कार्य में लगी रहती है जो कि हम कर रहे होते है. चाहे हम पढ़ रहे हो या लिख रहे हो या चल रहे हो या बोल रहे हो या भोजन कर रहे हो या कोई शारीरिक कार्य कर रहे हो. साथ ही साथ हमारे मन में एक और विचार प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है. इस विचार प्रक्रिया को हम रोकने का प्रयास न कर पाते है और नहीं यह सामान्यतः हमारे वश में होता है. अनेक बार हमें यह बेहतर भी लगता है कि हम दो कार्य एक साथ कर पा रहे है. वास्तव में हमें इससे कोई लाभ नहीं होता है और यह हमारी थकान का कारण है.
इसका हल निरंतर जप से इसलिए हो सकता है कि हमारी मन की दूसरी धारा निरंतर जप में लगी रहे तो निरंतर पुनरुक्ति के कारण इसमें मन की उर्जा व्यय नहीं होती है और उर्जा का संरक्षण होकर हमारे वर्त्तमान कार्य जो की हम प्रत्यक्षतः कर रहे होते है, उसमे एकाग्रचित्त होना संभव हो पाता है और बेहतर परिणाम मिलते है.
प्रत्यक्ष जप, माला फेरना या पूजा पाठ का इस युक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है. यह नाम या मंत्र के चुनाव से भी सम्बंधित नहीं है. ईसा या मूसा या मुहम्मद या प्रकृति, किसी भी शब्द या मंत्र से यही परिणाम प्राप्त करना संभव है. इस युक्ति का प्रारंभ करे और यदि दिन में १०-१५ मिनट भी प्रयोग कर पाए तो परिणाम का निरिक्षण करे | लाभ मिलने पर अभ्यास निरंतर करते रहे तो आनंद में वृद्धि और थकान में कमी निश्चित है.
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