शूर्पणखा ने देखा राम का मनमोहक रूप,
मन स्तब्ध हुआ, अप्रतिम, अतुलनीय पुरुष,
स्वप्न जैसे सत्य हुआ,
काम जाग्रत हुआ,
कर लिया निश्चय यही,
पाना इसे पति रूप में अभी।
मन स्तब्ध हुआ, अप्रतिम, अतुलनीय पुरुष,
स्वप्न जैसे सत्य हुआ,
काम जाग्रत हुआ,
कर लिया निश्चय यही,
पाना इसे पति रूप में अभी।
पूर्व जन्म की अप्सरा नयनतारा,
जन्मी राक्षसी रूप में ऋषि श्राप से,
लेकिन ऋषि होते है करुण,
और बदलते हैं शाप को वरदान में।
राक्षसी रूप में पाओगी दर्शन प्रभु राम के,
सार्थक होगा धरा पर राक्षस जन्म भी,
करते है ऋषि मुनि, जन्मों तक तपस्या,
लेकिन सौभाग्य से होती है, यह कृपा कभी।
जन्मी राक्षसी रूप में ऋषि श्राप से,
लेकिन ऋषि होते है करुण,
और बदलते हैं शाप को वरदान में।
राक्षसी रूप में पाओगी दर्शन प्रभु राम के,
सार्थक होगा धरा पर राक्षस जन्म भी,
करते है ऋषि मुनि, जन्मों तक तपस्या,
लेकिन सौभाग्य से होती है, यह कृपा कभी।
पुलस्त्य ऋषि के कुल में हुआ जन्म,
कुम्भकर्ण व दशानन की थी बहन,
पति विद्युज्जिह्न का वध हुआ रावण से,
ख़रदूषण के साथ रहने लगी दंडकवन में !
ख़र, दूषण व त्रिशिरा जैसे राक्षस भाई,
करते थे राज जनस्थान में, सभी आततायी।
कुम्भकर्ण व दशानन की थी बहन,
पति विद्युज्जिह्न का वध हुआ रावण से,
ख़रदूषण के साथ रहने लगी दंडकवन में !
ख़र, दूषण व त्रिशिरा जैसे राक्षस भाई,
करते थे राज जनस्थान में, सभी आततायी।
शूर्पणखा का भाव, राक्षस संस्कृति जैसा था,
काम वासना ही संग हेतु पर्याप्त कारण था।
लेकिन आर्यपुत्र राम हैं एकपत्नीव्रत धारी,
नहीं स्वीकारा काम निमंत्रण, चाहे जो हो नारी।
रामानुज लक्ष्मण के पास जब वह गयी,
अनायास ही नाक कटी, वह दीक्षित हो गयी।
काम वासना ही संग हेतु पर्याप्त कारण था।
लेकिन आर्यपुत्र राम हैं एकपत्नीव्रत धारी,
नहीं स्वीकारा काम निमंत्रण, चाहे जो हो नारी।
रामानुज लक्ष्मण के पास जब वह गयी,
अनायास ही नाक कटी, वह दीक्षित हो गयी।
अब तो उसे याद आ गया अपना अतीत,
जाग्रत हो गयी अपने पति से प्रीत।
अब अवसर है, राक्षस कुल का हो सर्वनाश,
इसी में है उनका कल्याण, आई भाई के पास।
जाग्रत हो गयी अपने पति से प्रीत।
अब अवसर है, राक्षस कुल का हो सर्वनाश,
इसी में है उनका कल्याण, आई भाई के पास।
सम्पूर्ण सेना और ख़र दूषण, सभी मारे गए,
पहुँची लंकेश के पास, सभी धिक्कारे गए।
दिया नीति का उसने सुंदरतम उपदेश,
रावण को कहा याद नहीं, तुम्हें कोष और देश।
विद्या विनय बिना, सत्कर्म हरि समर्पण बिना,
राज्य नीति बिना , एवं धन धर्म बिना।
सब व्यर्थ हो जाते हैं, बिना फल दिए,
मानो ये सब पाने में, व्यर्थ ही श्रम किए।
विषय संग से सन्यासी, बुरी सलाह से राजा,
अहंकार से ज्ञान और मदिरा पान से लज्जा।
अकड़ से प्रेम और मदहोशी से गुणवान,
हो जाते ये सभी नष्ट, इसे रावण तू सत्य जान।
शत्रु, सर्प, अग्नि, पाप और जो हो समर्थ या स्वामी,
इन्हें छोटा समझने की भूल, पड़ती है, भविष्य में भारी।
रावण को कराया सीता की सुंदरता का बोध,
सर्वनाश की राह पर, दशानन का जागा क्रोध।
शूर्पणखा ने लक्ष्मण से, दीक्षा को सफल बनाया।
वर्षों की तपस्या के बाद, शिव से वरदान पाया।
सर्वनाश की राह पर, दशानन का जागा क्रोध।
शूर्पणखा ने लक्ष्मण से, दीक्षा को सफल बनाया।
वर्षों की तपस्या के बाद, शिव से वरदान पाया।
कृष्णावतार में कुब्जा बन, दिया उन्हें अंगराग,
पाया कृष्ण का साथ अनुपम, धन्य हो गए भाग।
यदि जीवन में किसी भी तरह राम आ जाए,
उनसे प्रीत लगे और मन का रिश्ता जुड़ जाए।
स्वतः होता जीवन सफल, बनता है सब काम,
राम से जुड़े यह मन, करें राम को प्रणाम।
उनसे प्रीत लगे और मन का रिश्ता जुड़ जाए।
स्वतः होता जीवन सफल, बनता है सब काम,
राम से जुड़े यह मन, करें राम को प्रणाम।
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