Friday, December 31, 2021

संकल्प

जीवन का हर क्षण अब इतना मधुर है,
लगता है आज जीवन भी क्षणभंगुर है।
 
घृणा के अभाव में हर परिवर्तन सुखदायी है,
पूर्ण कुसुमित जीवन हो, यह चेतना आयी है,
चेतनता का हर क्षण, जाग्रत हो जाएँ प्रतिपल,
न मुंदी रहे ये आंखे, जैसे रहती थी कल। 
कल तक था जो सोया, जागा आज विदुर है,
जीवन का हर क्षण अब इतना मधुर है। 

सृजन कार्य में लगे, योग्यता खुद की बढे,
अहं से मुक्ति मिले, संतुष्टि का भाव बढे,
जीवन लक्ष्य के प्रति,मन आबद्ध हो रहा है,
तदनुरूप क्षमताओं को विकसित कर रहा है। 
चेतना के क्षण में, आत्मविश्वास प्रबल है,
जीवन का हर क्षण अब इतना मधुर है। 

स्नेह का विकास हो, अब यही प्रयास हो,
भ्रातृत्व के भाव का बोध अनायास हो,
जैसे जैसे विराट से मिलन हो रहा है,
अपनी लघुता का आभास हो रहा है। 
बूद से समुद्र का मिलन ख़ुदबख़ुद है,
जीवन का हर क्षण अब इतना मधुर है।

मैं प्रसन्न हूँ?

आसान होता है यह उत्तर देना कि सब अच्छा चल रहा है!
अपने को भी बताना होता है मुश्किल,
कि, बुरा क्या लग रहा है !!
यह भी तो लगता है कि मुझे कोई दुःख नहीं है,
मुझे किसी की परवाह नहीं, ख़ुद से मस्त हूँ, शिकायत नहीं है। 
क्या कुछ रटे हुए उत्तर दे रहे हैं?
बिना जाने ही, बस कह रहे हैं?

औपचारिकता मात्र ही तो है, ये प्रश्न और हमारे उत्तर,
यदि सुनाने लगे हाल अपना, भाग जाएँगे ये डरकर,
कहाँ से लायें समय तुम्हारा हाल सुनने के लिए,
समय तो मिला नहीं, कभी स्वयं का हाल भी सुनने के लिए।  

जब हम किसी का हाल सुनते हैं,
अपने भीतर तो अपना ही हाल सुनते हैं!
याद आता है हमें कि हमने क्या किया था,
ऐसे ही हालात में कैसे काम किया था ?
अपनी ग़लतियाँ याद आती है,
मन में एक टीस सी उठ जाती है,
मुझे तो ख़्याल ही न था, 
मुझे बेहतर होना चाहिए था। 
आगे के लिए सबक़ मिल जाता है,
अपना हाल थोड़ा ठीक हो जाता है। 
ऐसे किसी और का भला ना भी करें,
ख़ुद का तो भला हो ही जाता है। 

अच्छा अपना हाल यदि हम ख़ुद को सुनायें,
क्या हम सच्चाई से स्वयं को जान पायें?
अपने काम में कमी भले कोई ना बताये,
हम तो जानते हैं, 
फिर अनजान क्यों बन जाते हैं?
अपने काम में अपनी ओर से सुधार,
निरंतर बना देता है, इसे और बेहतर। 
लेकिन प्रसन्नता के लिए तो और भी ज़रूरी है,
अपने स्वभाव में निरंतर सुधार। 
यह बना देता है, हमें और बेहतर। 

नयी बात को सीखना और अभ्यास, 
बन जाती है आदत और फिर स्वभाव। 
ऐसे ही जन्म जन्मांतर से बहुत सा अभ्यास,
परिणाम है यह हमारा वर्तमान स्वभाव। 
स्वभाव में कमी हमें हमारी विशेषता लगती है,
ये कमियाँ ही हमें औरों से, अलग जो करती है। 
विशेषता समझते हैं, इसीलिए कमी दूर नहीं होती है,
इस सच्चाई को समझने में उम्र गुज़र जाती है। 

दुःख को जानने का पैमाना क्या है?
अरे मैं प्रसन्न हूँ, मुझे पता है। 
‘प्रसन्नता में कोई शिकायत नहीं होती है। 
प्रसन्न व्यक्ति क्रोध नहीं करता है।’
सतह पर दिखावटी होती है हमारी ख़ुशी,
ज़रा सी बात पर आया क्रोध,
क्योंकि हम हैं, भीतर से दुःखी। 
अब जानो स्वयं को कि सुखी या दुःखी?
यदि क्रोध और शिकायत नहीं, आप हैं सुखी,
वरना यह दिखावटी है ख़ुशी, आप हैं दुःखी। 

बुरा लगने की बात नहीं, शांति से विचार करो,
अपने भीतर शांति है, उसी की तलाश करो। 
दूसरे के प्रति अपना कर्तव्य हम पूरा करें,
उससे अपनी प्रसन्नता को बाँधकर ना रखे। 
हम प्रसन्न रहने का दिखावा भले करें,
अपने सत्य को पहचाने और स्वयं सच में प्रसन्न रहें। 

बस अब एक आख़िरी बात और है,
दुःख ना होना ही प्रसन्नता है, यही सत्य है।  
दुःख का कारण है अपेक्षा,
आशा और तुलना दोनो से दूरी,
हो जाएगी प्रसन्नता पूरी।

चाहत

जो आपको चाहे,
उसे आप भी चाहें, तो ये ख़ूबसूरत होगा !
यदि आप ना भी चाहें,
उसकी उपेक्षा ना करे, वो भी चलेगा। 

लेकिन किसी की चाहत का अपमान करके,
भला आपको क्या मिलेगा ?
सिवाय इसके कि - बस एक बार और,
बढ़ जाएगा आपका अहंकार,
आपको लगेगा एक बार फिर से,
हैं आप ख़ास, अलग हैं सब से। 

प्रेम से भर ले स्वयं को,
सम्मान का प्रदर्शन भी नहीं,
और अपमान का सवाल ही नहीं,
बस नम्रतापूर्वक व्यवहार,
निश्चित ही आपके लिए खोल देता है,
कई बंद दरवाज़े, और बढ़ा देता है, 
आपको उन्नति की राह पर !

चेहरा

चेहरा जो सामने दिखता है, शरीर का ऊपरी भाग,
ऊपर है मस्तक, जहाँ कभी शीतलता और कभी आग। 
मन है कहाँ, मस्तक में या हृदय में ?
भावना कहाँ, दिमाग़ में या मन में ?
चेहरा क्या सब कुछ दिखला देता है ?
या मन चेहरे को झुठला देता है ?

पति - पत्नी कर रहे हैं अपनी शाश्वत लड़ाई,
कोई आ गया मिलने के लिए, ठहर गई लड़ाई। 
दोनो के चेहरे पर छाई हुई मुस्कान,
भूल गए लड़ाई, रखा अतिथि का मान। 
मन का खेल कुछ और, चेहरे पर कुछ और,
गया अतिथि, लौटी लड़ाई, कोई नहीं कमज़ोर। 

काम में व्यस्त या मनोरंजन में लगे हुए,
अपना मनपसंद काम करते हुए,
कोई व्यवधान आ जाता है,
चेहरे पर तनाव उभर आता है। 

लेकिन चेहरे के भीतर भी कई चेहरे हैं,
इन चेहरों में भी कुछ अंधे हैं, कुछ बहरे हैं!
कुछ चेहरे जब सामने आते हैं,
जब ख़ुद को मुसीबत में पाते है। 

कोई चेहरा है शैतानी, 
जो कर लेता है मनमानी,
सामने कोई मजबूर या लाचार जब आता है,
मदद के नाम पर नाजायज़ फ़ायदा उठाता है।

समाज के लिए रहता है भले इंसान का चेहरा,
निजी जीवन में कुछ भी कर लेता है वही चेहरा।