चेहरा जो सामने दिखता है, शरीर का ऊपरी भाग,
ऊपर है मस्तक, जहाँ कभी शीतलता और कभी आग।
मन है कहाँ, मस्तक में या हृदय में ?
भावना कहाँ, दिमाग़ में या मन में ?
चेहरा क्या सब कुछ दिखला देता है ?
या मन चेहरे को झुठला देता है ?
ऊपर है मस्तक, जहाँ कभी शीतलता और कभी आग।
मन है कहाँ, मस्तक में या हृदय में ?
भावना कहाँ, दिमाग़ में या मन में ?
चेहरा क्या सब कुछ दिखला देता है ?
या मन चेहरे को झुठला देता है ?
पति - पत्नी कर रहे हैं अपनी शाश्वत लड़ाई,
कोई आ गया मिलने के लिए, ठहर गई लड़ाई।
दोनो के चेहरे पर छाई हुई मुस्कान,
भूल गए लड़ाई, रखा अतिथि का मान।
मन का खेल कुछ और, चेहरे पर कुछ और,
गया अतिथि, लौटी लड़ाई, कोई नहीं कमज़ोर।
काम में व्यस्त या मनोरंजन में लगे हुए,
अपना मनपसंद काम करते हुए,
कोई व्यवधान आ जाता है,
चेहरे पर तनाव उभर आता है।
लेकिन चेहरे के भीतर भी कई चेहरे हैं,
इन चेहरों में भी कुछ अंधे हैं, कुछ बहरे हैं!
कुछ चेहरे जब सामने आते हैं,
जब ख़ुद को मुसीबत में पाते है।
कोई चेहरा है शैतानी,
जो कर लेता है मनमानी,
सामने कोई मजबूर या लाचार जब आता है,
मदद के नाम पर नाजायज़ फ़ायदा उठाता है।
समाज के लिए रहता है भले इंसान का चेहरा,
निजी जीवन में कुछ भी कर लेता है वही चेहरा।
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