Monday, July 26, 2010

कुछ कहावते!

राजा, जोगी, अगन, जल, इनकी उलटी रीत!
भला चाहो संसार में, इनसे थोड़ी प्रीत!!

देखो, भारो, तको मत,
खाओ, पियो, चखो मत,
डोलों, फिरो, थको मत,
बोलो, चालो, बको मत

दिन में गर्मी, रात में ओस,
माघ कहे बरखा सौ कोस

धन का हरण, पुत्र का शोक
नित उठ गेल चलें जो लोग
वृद्ध पुरुष की मर गयी नार,
बिना अगन के जल गए चार

आस परायी जो करे तो होतो ही मर जाये

जननी जने तो दो ही जन, के पंडित के शूर,
नितर रहिजे बाँझडी, मती गवाए नूर

न शूरा न पंडिता , जननी जन भाग्यवंता

दूर जवाई पावनो, गाँव जवाई आधो,
घर जवाई गधा बराबर, चाहे जितना लादो

ससुराल सुखों की सार,
... दिना दो चार
जो रहे मास पखवारा,
... हाथ में झाड़ू, बगल में झारा

गढ़ जीत लियो मोरी काणी,
वर ठाढ़ होय जब जाणी |

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