भयंकर है विनाश की शुरुआत,
हे अभयंकर, हम क्यों है आर्त?
आप का बनाया मानव , प्रकृति और वायरस,
क्यों नहीं रह पाते हैं, सह-अस्तित्व में समरस !
उत्तर आ भी गया !
शुरुआत तूने की है मानव,
प्रकृति संवारती है, सब जीवों को माँ की तरह ,
बस मानव ही नष्ट कर रहा,
अपनी ही माँ प्रकृति को दानव की तरह !
केवल तुम्हारे शांत होने से सब खिल जाता है ,
तुम्हारा ‘विकास’ ही इस विनाश को लाता है।
तुम अभी भी जागो, जियो सबके साथ,
लेकिन उससे पहले रह लो, परिवार के साथ !
जिनको अपना कहते हो, उनके लिए जी लो,
अहंकार को छोड़ो, अपना कर्तव्य पूरा कर लो।
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