21 दिन!
आज पाँचवाँ दिन है !
रामचरितमानस का नवाँ व दसवाँ मासपारायण।
धनुष भंग और सीता ने पहनाई, वरमाला राम को,
लेकिन समाचार ने क्रोधित किया, परशुराम को,
लक्ष्मण के व्यंगबाण क्रोध को बढ़ा देते हैं,
लेकिन राम के विनय से मुनि शीतल हो जाते हैं।
दशरथ हर्षित हुए समाचार सब पाकर,
चल दिए जनकपुरी को, बारात सजा कर।
लॉकडाउन से पीड़ा बढ़ गयी, गरीब मज़दूरों की,
यह बीमारी तो थी, विदेश घूमने वाले अमीरों की,
फ़ैक्टरी बंद हुई, कामगार दर बदर हुआ,
चल दिया घर को, अब कहीं का ना रहा।
एक बेचारा दो सौ किलोमीटर चल कर गिर गया,
सबने कहा, हृदयाघात से मर गया।
भूखे पेट वह चलता रहा दिल्ली से आगरा तक,
जब थका, अस्सी किमी शेष रहे तब तक।
कोरोनावायरस तो शायद जवान को बचा देता है,
भुखमरी, ग़रीबी का रोग, सभी को मार देता है।
हल होना है सीमा को सील करने से,
राज्य, क़िला, शहर और हर ग्राम में,
हर नागरिक का लेना होगा सहयोग,
लॉकडाउन नहीं, काम के लायक़ ये लोग।
सामाजिक दूरी सिखलाए हर नागरिक,
जीवन जिए, और काम करे, प्रत्येक नागरिक।
इन हालात में भी बचेंगे, दिहाड़ी के ये मज़दूर,
क्योंकि ईश्वर भी है इनके विश्वास से मजबूर।
इस देश के लोगों की रक्षा करेंगे श्री भगवान ,
हैं समर्थ, कर विश्वास, उनको अपना मान।
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