*मुझे कहा है १४ घंटे, *
मैं तो आ जाऊँगा शनिवार को ९ बजे घर पे,
और रहूँगा सोमवार को सुबह ९ बजे तक घर में।
तोड़ दूँगा क़ोरोनावायरस की चैन को,
करूँगा मुक्त इससे अपने भारत देश को।
मर जाएगा यह हर जगह पड़ा हुआ ख़ुद से ही,
और बच जाएँगे मेरे देशवासी इस क़हर से जी।
क्या होगा यदि,
एक दिन घरवालों को थोड़ा प्यार कर लूँगा,
अपने माँ बाप से पुरानी बातें ताज़ा कर लूँगा,
एक दिन कुछ बनाकर पत्नी को खिला दूँगा,
पुरानी किताबों की धूल हटा कर कुछ पढ़ लूँगा !
रविवार शाम पाँच बजे, देश में उठेगा शब्द घोष,
जो गुंजा देगा दिशाओं को, जागेंगे आशुतोष,
कर देंगे संहार इस क़ोरोनावायरस का,
हम तोड़ देंगे इसकी चैन, अब है सबके बस का।
हो सकता है इस रक्तबीज के लिए फिर फिर लड़ना पड़े,
हमारी शक्ति को जगाकर हम काली का रूप धारण करें।
एक एक मरीज़ या संदिग्ध को एकांत में रखना होगा ,
इसका विस्तार अब भारत में पूरी तरह रोकना होगा।
मुझे कुछ नुक़सान भी हो, तो उसकी अब परवाह नहीं,
अपने देशवासियों के, जीवन से बड़ी कोई चाह नहीं।
Rajasthan Lockdown - Day 2 March 24
भयंकर है विनाश की शुरुआत,
हे अभयंकर, हम क्यों है आर्त?
आप का बनाया मानव , प्रकृति और वायरस,
क्यों नहीं रह पाते हैं, सह-अस्तित्व में समरस !
उत्तर आ भी गया !
शुरुआत तूने की है मानव,
प्रकृति संवारती है, सब जीवों को माँ की तरह ,
बस मानव ही नष्ट कर रहा,
अपनी ही माँ प्रकृति को दानव की तरह !
केवल तुम्हारे शांत होने से सब खिल जाता है ,
तुम्हारा ‘विकास’ ही इस विनाश को लाता है।
तुम अभी भी जागो, जियो सबके साथ,
लेकिन उससे पहले रह लो, परिवार के साथ !
जिनको अपना कहते हो, उनके लिए जी लो,
अहंकार को छोड़ो, अपना कर्तव्य पूरा कर लो।
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