रामचरितमानस का सम्पूर्ण पारायण 21 दिन में ।
कथा का प्रारम्भ, मंगल कामना,
शिव सती प्रसंग,
दक्ष यज्ञ विध्वंश,
शिव पार्वती विवाह !
अब राम कथा सुनाएँगे शिव पार्वती को !
रामावतार के कारण अनेक,
उनमें से वर्णित कुछ एक,
नारद ऋषि को व्यापी माया,
प्रतापभानु ने विप्रों को, भूसुर मांस खिलाया,
शाप मिला, भगवान विष्णु को मानव देह,
नारी विरह और वानर सहायता का,
राजा प्रतापभानु को शाप मिला,
सपरिवार राक्षस जन्म लेने का।
मनु शतरूपा को मिला वरदान,
परब्रह्म को पुत्र रूप में पाने का,
विप्र धेनु सुर संत हित,
लिया प्रभु ने निर्णय स्वयं पृथ्वी पर आने का !
राम जन्म, बाललीला,
विश्वामित्र के साथ जनकपुरी आगमन,
पुष्पवाटिका में सीता एवं राम का प्रथम मिलन!
धनुष भंग और सीता ने पहनाई, वरमाला राम को,
लेकिन समाचार ने क्रोधित किया, परशुराम को,
लक्ष्मण के व्यंगबाण क्रोध को बढ़ा देते हैं,
लेकिन राम के विनय से मुनि शीतल हो जाते हैं।
दशरथ हर्षित हुए समाचार सब पाकर,
चल दिए जनकपुरी को, बारात सजा कर।
राम विवाह का अनुपम वर्णन,
बारात का स्वागत - सत्कार !
चारों भाइयों के विवाह के बाद विदा,
एवं अवधपुरी में नववधुओं का आगमन।
राम के राज्याभिषेक की दशरथ ने मन में ठानी,
ले गुरु वसिष्ठ से आज्ञा, व्यवस्था भी कर डाली !
लेकिन विधि ने कुछ और विचारा, सुरकार्यहेतु,
शारदा ने प्रेरित की मंथरा, बन गयी कैकेयी हेतु ।
राम के अनुज भरत को राज्य, राम हेतु वनवास,
ऐसे वरदान माँगे कैकेयी ने, कैसा सत्यानाश।
लेकिन हर बुराई में भलाई छिपी होती है ,
ऐसे ही हर भलाई के गर्भ में, कोई बुराई होती है।
देवता, सदैव स्वार्थी होते हैं,
अपने कार्य हेतु, छल का सहारा लेते हैं।
राम प्रस्तुत हैं सहर्ष वन जाने के लिए,
लक्ष्मण और सीता भी साथ, धर्म निभाने के लिए !
बहुविधि समझाते हैं सभी, सीता को रूकने हेतु,
लेकिन आदिशक्ति स्वयं, वन जा रही लीला हेतु।
लक्ष्मण के लिए सेवा धर्म है सर्वोपरि,
माँ सुमित्रा ने सहर्ष आज्ञा दी, उर्मिला तो बिसरी।
केवट ने गंगा पार कराया, तारणहार को,
उतराई का क़र्ज़ छोड़, बांध लिया भगवान को !
वापस आते समय जो दोगे, ले लूँगा उसको सहर्ष,
राम ने स्वीकारा भक्ति भाव, वन में बढ़े सहर्ष।
गुह, मुनि भारद्वाज, ग्रामवासी नर नारी अनेक,
दर्शन कर अनुपम छवि, पाए अमोघ फल प्रत्येक।
राम चले जा रहे हैं वन में, लक्ष्मण सिय समेत,
आनंदित हो वाल्मीकि, बताते प्रभु को निकेत।
चित्रकूट में राम, करने लगे निवास,
उधर सुमंत्र पहुँच गए, अवध रनिवास।
दशरथ सब हाल सुनकर, तज देते हैं शरीर,
भारत शत्रुघ्न आ गए, पूछे - कहाँ रघुवीर ?
दशरथ के विधि विधान के, पश्चात् राज सभा में,
हो रहा विचार अब , देर ना करें राज्याभिषेक में ।
वशिष्ठ और कौशल्या,सब भरत को समझा रहे,
पूर्ण करो पिता की आज्ञा, धर्म यह बतला रहे।
भरत देते हैं, अब समझाईश का सविनय प्रत्युत्तर,
राम के वनगमन का हेतु मैं बना, लेकिन अब सभी विचार करें,
वन जाकर प्रभु राम को लौटा लाऐं, ऐसा सब प्रयास करें।
चले अवध के लोग सभी, और समस्त रनिवास,
गुह से मिलकर चले भरत, मुनि भारद्वाज के पास।
भरत आगे बढ़ रहे हैं, और उनके आगे चल रहा है उनका यश,
ग्लानि है भले माँ के कारण, फिर भी है राम मिलन का हर्ष।
गंगा, यमुना, मंदाकिनी के तट पर विश्राम एवं स्नान।
लक्ष्मण के मन में उठा संदेह, राम ने किया समाधान।
भरत मिल रहे राम से, कितना अनुपम दृश्य है,
प्रेम और स्नेह असीमित यहाँ, अपरिमित हर्ष है।
राजा जनक भी आ गए हैं, चित्रकूट सपरिवार,
कैसा अद्भुत समय है, शोक और हर्ष दोनों अपार।
भरत, स्वामी के समान राम की आज्ञा मानते हैं,
राम उनके मनचाहा करने का वचन दे देते हैं,
लेकिन प्रेम संकोच वश, भरत नहीं कह पाते हैं।
अवलम्ब चाहते हैं राम से चौदह वर्ष के लिए,
चरण पादुकाओं को लाते हैं, सिंहासन के लिए,
जीवन हैं तपस्वी का, नंदीग्राम में कुटिया बनाकर,
रहेगा यश अमर, जब तक रहेंगे शशि दिवाकर।
राम आनंदित हो बन में, तपस्वी जीवन जी रहें है,
भरत अयोध्या में विरह की अग्नि में तप रहें है।
अरण्यकांड में लीला कर रहे हैं प्रभु राम !
अत्रि, शरभंग, सुतीक्ष्ण, अगस्त्य आदि ऋषि पाते हैं कृपा श्री राम की,
विराध, खर, दूषण व त्रिशिरा आदि राक्षस भी पाते हैं गति परम धाम की,
शूर्पणखा नाक कान विहीन हो उकसा देती है रावण को,
मारीच माया मृग बनता है, रावण हर ले जाता है सीता को।
राम तो बचपन से ही कर रहे हैं, अहिल्या जैसे वंचितों को प्रतिष्ठित,
उनके प्रेम-दर्शन हेतु माँ शबरी ही नहीं, सुग्रीव हनुमान भी प्रतीक्षित।
पहुँचे पंपासरोवर, नारद का संशय कर रहे दूर,
यदि भक्त रहे राम पर निर्भर,तो कृपा रहे भरपूर।
किष्किंधाकांड में राम मिलते हैं, अनन्य भक्त हनुमान से,
बाली ने छीना राज्य और पत्नी, अपने अनुज सुग्रीव से,
राम मित्रता करते हैं सुग्रीव से, बाली का वध कर देते है,
अंगद को युवराज बनाकर, सुग्रीव को राजा बना देते हैं।
वर्षा ऋतु के व्यतीत होने के पश्चात्,
वानर दल कर देते हैं, सभी दिशाओं में प्रयाण,
दक्षिण दिशा में गए अंगद, जामवन्त, महावीर,
जो जान लेते हैं, स्वयंप्रभा व संपाती से मिलकर,
कि लंका में, अशोक वाटिका, में सीता शोकमग्न है,
समुद्र पार कैसे जाए, अब जामवन्त और वानर विचारमग्न है।
सुदरकांड अति सुंदर वर्णन है, श्री हनुमान का,
आज हनुमान जयंती भी, संयोग है विधान का।
सागर में मिले मैनाक, सुरसा और बिम्ब आहारी राक्षसी,
और लंका के द्वार पर, मिल गयी राक्षसी लंकिनी।
और राक्षसों की नगरी लंका में, मिले रामभक्त विभीषण,
अशोक वाटिका में प्रवेश की, युक्ति बता देते हैं विभीषण।
अशोक वाटिका में हनुमान, सीता से मिलते हैं ,
रक्षकों के साथ साथ, अक्षय को मार देते हैं।
मेघनाद के ब्रह्मपाश में हनुमान बंध जाते हैं,
पूँछ में लगाई आग से, लंका को जला देते हैं।
राम समुद्र के ऊपर पुल बनाना चाहते हैं,
विभीषण लंका छोड़, राम की शरण आ जाते है।
राम पहुँच गए लंका में, नल-नील से सेतु बँधाकर,
लंका पति रावण से युद्ध, की योजना बनाकर।
लेकिन एक अंतिम अवसर, रावण को देते हैं,
बाली पुत्र अंगद को, अपना दूत बनाकर भेजते हैं।
अंगद ने रावण को, पैर से बल दिखला दिया,
भरी सभा में रावण को , लज्जित कर दिया।
प्रहस्त, माल्यवंत व मंदोदरी रावण को समझाते रहे,
काल नाच रहा सिर पर, रावण के बीस कान बहरे हुए।
युद्ध का प्रथम दिन, प्रारंभ हुआ वानर-राक्षस रण,
लंका के चारों द्वारों पर,किया वानरों ने आक्रमण।
युद्ध प्रारम्भ हुआ, राक्षस वानर लड़ रहे परस्पर,
मेघनाद रण में आकर, करता है युद्ध भयंकर ।
शक्ति लगी लक्ष्मण को, हनुमान लाए सुषेण वैद्य को,
कालनेमि का वध किया, ले आए संजीवनी के पर्वत को।
कुम्भकर्ण लड़ा युद्ध में घनघोर, वध किया अनगिनत वानरों का,
लेकिन अंत में पाई शरण, राम ने वध किया कुम्भकर्ण का।
रावण ने जगाया था कुम्भकर्ण को, लेकिन सब व्यर्थ हो गया,
लक्ष्मण ने मेघनाद का वध करके रावण को विकल कर दिया !
रावण ने जगाया था कुम्भकर्ण को, लेकिन सब व्यर्थ हो गया,
लक्ष्मण ने मेघनाद का वध करके रावण को विकल कर दिया !
रावण ने देखा, सब नष्ट हुए, स्वयं युद्ध करने लगा,
अनगिनत रावण रचे माया से, वानरों को भयभीत करने लगा।
राम ने काटी माया, पर युद्ध कई दिन चलता रहा,
शिव कृपा से पुनः पुनः, नए शीश भुज पाता रहा।
आख़िर रावण लड़ रहा, कर अपनी माया का विस्तार,
कभी रचता रावण बहुत से, या राम-लक्ष्मण, हनुमान अपार।
सारी माया, भ्रम, संदेह, प्रभु राम एक बाण से मिटा देते हैं,
विभीषण प्रभु की इच्छा जान, रावण मृत्यु का भेद बता देते हैं।
इकतीस बाण अब एक साथ छोड़ देते हैं श्रीराम,
नाभि से अमृत, दस शीश, बीस भुज, हरे प्राण।
पवित्रता सिद्धि हेतु, सीता दे रही है अग्नि परीक्षा,
कैसी यह लीला प्रभु की, क्या है दैव की इच्छा ?
धरती की पुत्री सीता जन्मी पंच तत्व से,
समुद्र से प्रकट हुई लक्ष्मी के रूप में,
लीला के लिए वन में समा गई थी अग्नि में,
अग्नि परीक्षा से जन्मी पुनः अग्नि के मध्य से।
वरना तो रावण उनके तेज से ही भस्म हो जाता,
अवतारी प्रभु की लीला का अवसर कब आता ?
राम आए अयोध्या में, उत्सव त्रैलोक्य मना रहा,
वशिष्ठ के द्वारा राम का राज्याभिषेक हो रहा।
अनेक मुनि, देवगण, ब्रह्मा और शिव शंकर स्वयं,
आते हैं राम-दर्शन को, जय राम रमा रमनं शमनं।
संत कौन? जब राम हनुमान, भरत को बतलाते हैं!
चंदन और कुल्हाड़ी के उदाहरण से समझाते हैं।
चंदन काटने वाले लोहे को अपनी सुगंध दे देता है,
लोहा तपता है आग में, चंदन देवों को चढ़ता है।
राम राज्य में सब सुखी, संत समान हो जाते हैं,
दैविक दैहिक भोतिक ताप, से मुक्त हो जाते हैं।
उत्तरकांड में वर्णित, गरुड़ काकभुशुंड़ी कथा,
रामकृपा से काक जैसा पक्षी, है सिद्ध मुनि जथा।
विष्णु के वाहन,पक्षिराज गरुड़, भ्रमित हो जाते हैं,
सगुण लीला है अद्भुत, ज्ञानी विस्मित हो जाते हैं।
कलियुग और सतयुग का,वर्णन संक्षिप्त किया है,
तुलसीदास जी ने, गागर में सागर भर दिया है।
रामायण का फल है कि भक्ति करें श्री राम से,
गरुड़ का प्रश्न है कि क्यों भक्ति विशेष ज्ञान से?
काकभुशुंड़ी समझा रहे, ज्ञान विज्ञान पुरुष जाति,
माया न मोहे भक्ति को, क्यूँकि दोनो नारी जाति।
यम, नियम, कर्तव्य का पालन, और वैराग्य हो,
अनेक विघ्न पार करने पर, ज्ञान मार्ग सिद्ध हो।
भक्ति के लिए राम कथा का अवगाहन करो।
प्रभु स्मरण करते हुए, कर्तव्य का पालन करो।
जब विनीत होकर कर्तव्य में लगा दे पूरी शक्ति,
प्रसन्न होकर व्यक्ति को, श्री राम दे देते भक्ति।
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