Wednesday, April 15, 2020

Lockdown 1.0 Day 1-21 रामचरितमानस Mar 25 - Apr 14, 2020

रामचरितमानस का सम्पूर्ण पारायण 21 दिन में 
कथा का प्रारम्भमंगल कामना,
शिव सती प्रसंग,
दक्ष यज्ञ विध्वंश,
शिव पार्वती विवाह !
अब राम कथा सुनाएँगे शिव पार्वती को !


रामावतार के कारण अनेक,
उनमें से वर्णित कुछ एक,
नारद ऋषि को व्यापी माया,
प्रतापभानु  ने विप्रों कोभूसुर मांस खिलाया,
शाप मिलाभगवान विष्णु को मानव देह,
नारी विरह और वानर सहायता का,
राजा प्रतापभानु को शाप मिला,
सपरिवार राक्षस जन्म लेने का। 
मनु शतरूपा को मिला वरदान,
परब्रह्म को पुत्र रूप में पाने का,
विप्र धेनु सुर संत हित,
लिया प्रभु ने निर्णय स्वयं पृथ्वी पर आने का !


राम जन्मबाललीला,
विश्वामित्र के साथ जनकपुरी आगमन,
पुष्पवाटिका में सीता एवं राम का प्रथम मिलन!


धनुष भंग और सीता ने पहनाईवरमाला राम को,
लेकिन समाचार ने क्रोधित कियापरशुराम को,
लक्ष्मण के व्यंगबाण क्रोध को बढ़ा देते हैं,
लेकिन राम के विनय से मुनि शीतल हो जाते हैं। 
दशरथ हर्षित हुए समाचार सब पाकर,
चल दिए जनकपुरी कोबारात सजा कर। 


राम विवाह का अनुपम वर्णन,
बारात का स्वागत - सत्कार !
चारों भाइयों के विवाह के बाद विदा,
एवं अवधपुरी में नववधुओं का आगमन। 


राम के राज्याभिषेक की दशरथ ने मन में ठानी,
ले गुरु वसिष्ठ से आज्ञाव्यवस्था भी कर डाली !
लेकिन विधि ने कुछ और विचारासुरकार्यहेतु,
शारदा ने प्रेरित की मंथराबन गयी कैकेयी हेतु 
राम के अनुज भरत को राज्यराम हेतु वनवास,
ऐसे वरदान माँगे कैकेयी नेकैसा सत्यानाश। 

लेकिन हर बुराई में भलाई छिपी होती है ,
ऐसे ही हर भलाई के गर्भ मेंकोई बुराई होती है। 
देवतासदैव स्वार्थी होते हैं,
अपने कार्य हेतुछल का सहारा लेते हैं। 


राम प्रस्तुत हैं सहर्ष वन जाने के लिए,
लक्ष्मण और सीता भी साथधर्म निभाने के लिए !
बहुविधि समझाते हैं सभीसीता को रूकने हेतु,
लेकिन आदिशक्ति स्वयंवन जा रही लीला हेतु। 
लक्ष्मण के लिए सेवा धर्म है सर्वोपरि,
माँ सुमित्रा ने सहर्ष आज्ञा दीउर्मिला तो बिसरी। 

केवट ने गंगा पार करायातारणहार को,
उतराई का क़र्ज़ छोड़बांध लिया भगवान को !
वापस आते समय जो दोगेले लूँगा उसको सहर्ष,
राम ने स्वीकारा भक्ति भाववन में बढ़े सहर्ष। 
गुहमुनि भारद्वाजग्रामवासी नर नारी अनेक,
दर्शन कर अनुपम छविपाए अमोघ फल प्रत्येक। 


राम चले जा रहे हैं वन मेंलक्ष्मण सिय समेत,
आनंदित हो वाल्मीकिबताते प्रभु को निकेत। 
चित्रकूट में रामकरने लगे निवास,
उधर सुमंत्र पहुँच गएअवध रनिवास। 

दशरथ सब हाल सुनकरतज देते हैं शरीर,
भारत शत्रुघ्न  गएपूछे - कहाँ रघुवीर ?
दशरथ के विधि विधान केपश्चात् राज सभा में,
हो रहा विचार अब , देर ना करें राज्याभिषेक में 
वशिष्ठ और कौशल्या,सब भरत को समझा रहे,
पूर्ण करो पिता की आज्ञाधर्म यह बतला रहे। 

भरत देते हैंअब समझाईश का सविनय प्रत्युत्तर,
राम के वनगमन का हेतु मैं बनालेकिन अब सभी विचार करें,
वन जाकर प्रभु राम को लौटा लाऐंऐसा सब  प्रयास करें। 
चले अवध के लोग सभीऔर समस्त रनिवास,
गुह से मिलकर चले भरतमुनि भारद्वाज के पास। 


भरत आगे बढ़ रहे हैंऔर उनके आगे चल रहा है उनका यश,
ग्लानि है भले माँ के कारणफिर भी है राम मिलन का हर्ष। 
गंगायमुनामंदाकिनी के तट पर विश्राम एवं स्नान।
लक्ष्मण के मन में उठा संदेहराम  ने किया समाधान।


भरत मिल रहे राम सेकितना अनुपम दृश्य है,
प्रेम और स्नेह असीमित यहाँअपरिमित हर्ष है। 
राजा जनक भी  गए हैंचित्रकूट सपरिवार,
कैसा अद्भुत समय हैशोक और हर्ष दोनों अपार।  
भरतस्वामी के समान राम की आज्ञा मानते हैं
राम उनके मनचाहा करने का वचन दे देते हैं,
लेकिन प्रेम संकोच वशभरत नहीं कह पाते हैं। 

अवलम्ब चाहते हैं राम से चौदह वर्ष के लिए,
चरण पादुकाओं को लाते हैंसिंहासन के लिए,
जीवन हैं तपस्वी कानंदीग्राम में कुटिया बनाकर,
रहेगा यश अमरजब तक रहेंगे शशि दिवाकर। 
राम आनंदित हो बन मेंतपस्वी जीवन जी रहें है,
भरत अयोध्या में विरह की अग्नि में तप रहें है। 


अरण्यकांड में लीला कर रहे हैं प्रभु राम !
अत्रिशरभंगसुतीक्ष्णअगस्त्य  आदि ऋषि पाते हैं कृपा श्री राम की,
विराधखरदूषण  त्रिशिरा आदि राक्षस भी पाते हैं गति परम धाम की,

शूर्पणखा नाक कान विहीन हो उकसा देती है रावण को,
मारीच माया मृग बनता हैरावण हर ले जाता है सीता को। 
राम तो बचपन से ही कर रहे हैंअहिल्या जैसे वंचितों को प्रतिष्ठित,
उनके प्रेम-दर्शन हेतु माँ शबरी ही नहींसुग्रीव हनुमान भी प्रतीक्षित। 
पहुँचे पंपासरोवरनारद का संशय कर रहे दूर,
यदि भक्त रहे राम पर निर्भर,तो कृपा रहे भरपूर। 


किष्किंधाकांड में राम मिलते हैंअनन्य भक्त हनुमान से,
बाली ने छीना राज्य और पत्नीअपने अनुज सुग्रीव से,
राम मित्रता करते हैं सुग्रीव सेबाली का वध कर देते है,
अंगद को युवराज बनाकरसुग्रीव को राजा बना देते हैं। 

वर्षा ऋतु के व्यतीत होने के पश्चात्,
वानर दल कर देते हैंसभी दिशाओं में प्रयाण,
दक्षिण दिशा में गए अंगदजामवन्तमहावीर,
जो जान लेते हैंस्वयंप्रभा  संपाती से मिलकर
कि लंका मेंअशोक वाटिकामें सीता शोकमग्न है,
समुद्र पार कैसे जाएअब जामवन्त और वानर विचारमग्न है। 


सुदरकांड अति सुंदर वर्णन हैश्री हनुमान का,
आज हनुमान जयंती भीसंयोग है विधान का। 
सागर में मिले मैनाकसुरसा और बिम्ब आहारी राक्षसी,
और लंका के द्वार परमिल गयी राक्षसी लंकिनी।
और राक्षसों की नगरी लंका मेंमिले रामभक्त विभीषण,
अशोक वाटिका में प्रवेश कीयुक्ति बता देते हैं विभीषण। 

अशोक वाटिका में हनुमानसीता से मिलते हैं ,
रक्षकों के साथ साथअक्षय को मार देते हैं। 
मेघनाद के ब्रह्मपाश में हनुमान बंध जाते हैं,
पूँछ में लगाई आग सेलंका को जला देते हैं। 
राम समुद्र के ऊपर पुल बनाना चाहते हैं,
विभीषण लंका छोड़राम की शरण  जाते है। 


राम पहुँच गए लंका मेंनल-नील से सेतु बँधाकर,
लंका पति रावण से युद्धकी योजना बनाकर।
लेकिन एक अंतिम अवसररावण को देते हैं,
बाली पुत्र अंगद कोअपना दूत बनाकर भेजते हैं। 

अंगद ने रावण कोपैर से बल दिखला दिया,
भरी सभा में रावण को , लज्जित कर दिया।
प्रहस्तमाल्यवंत  मंदोदरी रावण को समझाते रहे,
काल नाच रहा सिर पररावण के बीस कान बहरे हुए। 
युद्ध का प्रथम दिनप्रारंभ हुआ वानर-राक्षस रण
लंका के चारों द्वारों पर,किया वानरों ने आक्रमण। 


युद्ध प्रारम्भ हुआराक्षस वानर लड़ रहे परस्पर,
मेघनाद रण में आकरकरता है युद्ध भयंकर 
शक्ति लगी लक्ष्मण कोहनुमान लाए सुषेण वैद्य को,
कालनेमि का वध कियाले आए संजीवनी के पर्वत को।

कुम्भकर्ण लड़ा युद्ध में घनघोरवध किया अनगिनत वानरों का,
लेकिन अंत में पाई शरणराम ने वध किया कुम्भकर्ण का। 
रावण ने जगाया था कुम्भकर्ण कोलेकिन सब व्यर्थ हो गया,
लक्ष्मण ने मेघनाद का वध करके रावण को विकल कर दिया !
रावण ने देखासब नष्ट हुएस्वयं युद्ध करने लगा,
अनगिनत रावण रचे माया सेवानरों को भयभीत करने लगा। 
राम ने काटी मायापर युद्ध कई दिन चलता रहा,
शिव कृपा से पुनः पुनःनए शीश भुज पाता रहा। 


आख़िर रावण लड़ रहाकर अपनी माया का विस्तार,
कभी रचता रावण बहुत सेया  राम-लक्ष्मणहनुमान अपार। 
सारी मायाभ्रमसंदेहप्रभु राम एक बाण से मिटा देते हैं,
विभीषण प्रभु की इच्छा जानरावण मृत्यु का भेद बता देते हैं। 

इकतीस बाण अब एक साथ छोड़ देते हैं श्रीराम,
नाभि से अमृतदस शीशबीस भुजहरे प्राण। 
पवित्रता सिद्धि हेतुसीता दे रही है अग्नि परीक्षा,
कैसी यह लीला प्रभु कीक्या है दैव की इच्छा ?
धरती की पुत्री सीता जन्मी पंच तत्व से,
समुद्र से प्रकट हुई लक्ष्मी के रूप में,
लीला के लिए वन में समा गई थी अग्नि में,
अग्नि परीक्षा से जन्मी पुनः अग्नि के मध्य से। 
वरना तो रावण उनके तेज से ही भस्म हो जाता,
अवतारी प्रभु की लीला का अवसर कब आता ?


राम आए अयोध्या मेंउत्सव त्रैलोक्य मना रहा,
वशिष्ठ के द्वारा राम का राज्याभिषेक हो रहा। 
अनेक मुनिदेवगणब्रह्मा और शिव शंकर स्वयं,
आते हैं राम-दर्शन कोजय राम रमा रमनं शमनं।

संत कौनजब राम हनुमानभरत को बतलाते हैं!
चंदन और कुल्हाड़ी के उदाहरण से समझाते हैं। 
चंदन काटने वाले लोहे को अपनी सुगंध दे देता है,
लोहा तपता है आग मेंचंदन देवों को चढ़ता है। 
राम राज्य में सब सुखीसंत समान हो जाते हैं
दैविक दैहिक भोतिक तापसे मुक्त हो जाते हैं। 


उत्तरकांड में वर्णितगरुड़ काकभुशुंड़ी कथा,
रामकृपा से काक जैसा पक्षीहै सिद्ध मुनि जथा। 
विष्णु के वाहन,पक्षिराज गरुड़भ्रमित हो जाते हैं,
सगुण लीला है अद्भुतज्ञानी विस्मित हो जाते हैं। 
कलियुग और सतयुग का,वर्णन संक्षिप्त किया है,
तुलसीदास जी नेगागर में सागर भर दिया है। 


रामायण का फल है कि भक्ति करें श्री राम से,
गरुड़ का प्रश्न है कि क्यों भक्ति विशेष ज्ञान से?
काकभुशुंड़ी समझा रहेज्ञान विज्ञान पुरुष जाति,
माया  मोहे भक्ति कोक्यूँकि दोनो नारी जाति।

यमनियमकर्तव्य का पालनऔर वैराग्य  हो,
अनेक विघ्न पार करने परज्ञान मार्ग सिद्ध हो। 
भक्ति के लिए राम कथा का अवगाहन करो।  
प्रभु स्मरण करते हुएकर्तव्य का पालन करो। 
जब विनीत होकर कर्तव्य में लगा दे पूरी शक्ति,
प्रसन्न होकर व्यक्ति कोश्री राम दे देते भक्ति।

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