21 दिन!
आज आठवाँ दिन है !
रामचरितमानस का पंद्रहवाँ व सोलहवाँ मासपारायण।
राम प्रस्तुत हैं सहर्ष वन जाने के लिए,
लक्ष्मण और सीता भी साथ, धर्म निभाने के लिए !
बहुविधि समझाते हैं सभी, सीता को रूकने हेतु,
लेकिन आदिशक्ति स्वयं, वन जा रही लीला हेतु।
लक्ष्मण के लिए सेवा धर्म है सर्वोपरि,
माँ सुमित्रा ने सहर्ष आज्ञा दी, उर्मिला तो बिसरी।
केवट ने गंगा पार कराया, तारणहार को,
उतराई का क़र्ज़ छोड़, बांध लिया भगवान को !
वापस आते समय जो दोगे, ले लूँगा उसको सहर्ष,
राम ने स्वीकारा भक्ति भाव, वन में बढ़े सहर्ष।
गुह, मुनि भारद्वाज, ग्रामवासी नर नारी अनेक,
दर्शन कर अनुपम छवि, पाए अमोघ फल प्रत्येक।
तबलीगी जमात ने मचा दिया कोरोना कोहराम,
चाहे राखे अल्लाह, चाहे रक्षा करे राम।
यह संक्रमण ना बदले सामाजिक संक्रमण में,
कर रही सरकार यही प्रयास, इस कोरोना रण में।
दुनिया में मौतों की संख्या और संक्रमण बढ़ रहा,
नापाक चीन अपने व्यापार के अवसर ढूँढ रहा।
प्रकृति का अपने सुधार का, यह अनूठा प्रयास,
मानव हो मानो वायरस, कर रही प्रकृति उपहास।
मानव के लॉकडाउन होने से, बाहर सब सुंदर है,
मानो प्रकृति कह रही, मुझे नहीं, तुझे ज़रूरत है।
तू समझ मेरे दुलार को, आनंद कर मेरी गोद में,
छोड़ शोषण, पुत्र मेरे, भर दूँगी तेरा मन मोद से।
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