21 दिन!
आज बारहवाँ दिन है !
रामचरितमानस का इक्कीसवाँ मासपारायण।
भरत मिल रहे राम से, कितना अनुपम दृश्य है,
प्रेम और स्नेह असीमित यहाँ, अपरिमित हर्ष है।
राजा जनक भी आ गए हैं, चित्रकूट सपरिवार,
कैसा अद्भुत समय है, शोक और हर्ष दोनों अपार।
भरत, स्वामी के समान राम की आज्ञा मानते हैं,
राम उनके मनचाहा करने का वचन दे देते हैं,
लेकिन प्रेम संकोच वश, भरत नहीं कह पाते हैं।
अवलम्ब चाहते हैं राम से चौदह वर्ष के लिए,
चरण पादुकाओं को लाते हैं, सिंहासन के लिए,
जीवन हैं तपस्वी का, नंदीग्राम में कुटिया बनाकर,
रहेगा यश अमर, जब तक रहेंगे शशि दिवाकर।
राम आनंदित हो बन में, तपस्वी जीवन जी रहें है,
भरत अयोध्या में विरह की अग्नि में तप रहें है।
लॉक डाउन कब ख़त्म होगा, व्याप्त है यही संशय,
ख़त्म हो चरणबद्ध, वरना क्या होगा, यह है भय।
हर समर्थ व्यक्ति को राष्ट्र का आह्वान यही है,
लॉक डाउन हो भले, आपका योगदान ज़रूरी है।
शोध करो, दान करो, जागृति फ़ैलाओ समाज में,
निरंतर प्रयास करो,अवसाद-भ्रम न हो समाज में।
संख्या बढ़े संक्रमण की, या भले ही मृत्यु की,
तुम्हारा विश्वास ना डिगे, जीत ना हो मृत्यु की।
उत्साह हमारा आज प्रकाश पर्व में प्रकाशित हो,
सामाजिक दूरी से निश्चित, कोरोना पराजित हो।
हम सभी हैं साथ - साथ, विश्व को दिखा देना है,
जगत् बढ़े साथ-साथ,विश्व बंधुत्व सिखा देना है।
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